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ओ अजनबी

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कौन हो तुम क्या है तुम्हारी नियति नहीं मालूम तुमसे कभी मिली भी नहीं ओ अजनबी सुनी है तुम्हारी आवाज शब्दों के बीच सांसों का आरोह –अवरोह एक बेचैनी गहरे धंसे जख्मों के साथ फीकी हंसी की कोशिश कहाँ ...

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लेखक के बारे में
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महिमा श्री

शिक्षा :- एम.सी.ए, एम जे. लेखन विधाएँ :- अतुकांत कविताएँ, ग़ज़ल, दोहें, कहानी, यात्रा-वृतांत, सामाजिक विषयों पर आलेख , समीक्षा साहित्यिक गतिविधियाँ:-एकल काव्यसंकलन अकुलाहटें मेरे मन की, अंजुमन प्रकाशन 2015, साझा काव्य संकलन “त्रिसुन्गंधी” , “परों को खोलते हुए-१”, “ सारांश समय का” , “काव्य सुगंध -2” “कविता अनवरत-3” में रचनाएँ शामिल, देश के विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में यथा सदानीरा, सप्तपर्णी, सुसम्भाव्य,आधुनिक साहित्य ,अंजुमन ,अटूटबंधन, खुशबू मेरे देश की, इ-पत्रिका- शब्द व्यंजना, जय-विजय आदि में रचनाएँ प्रकाशित, अंतर्जाल और गोष्ठीयों में साहित्य सक्रियता , सामाजिक कार्यों में सहभागिता सम्प्रति :पब्लिक सेक्टर में सात साल काम करने के बाद (मार्च २००७-अगस्त २०१४) वर्तमान में स्वतंत्र लेखन, पत्रकारिता , नई दिल्ली Blogs:www.mahimashree.blogspots.in  

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Apurva Jain
    30 दिसम्बर 2024
    बेहतरीन
  • author
    Naresh Ajnabee
    19 जनवरी 2023
    बहुत सुंदर लिखा है
  • author
    Manoj Kumar
    23 अप्रैल 2020
    nice 👌
  • author
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  • author
    Apurva Jain
    30 दिसम्बर 2024
    बेहतरीन
  • author
    Naresh Ajnabee
    19 जनवरी 2023
    बहुत सुंदर लिखा है
  • author
    Manoj Kumar
    23 अप्रैल 2020
    nice 👌