सुबह उठते ही फिर वही शोर शराबा सुनाई दिया। पड़ोस के घर में हीरा अपनी ९० वर्षीय माँ को भला बुरा सुना रहा था| ''आज फिर से लघुशंका बिस्तर में इतनी ठण्ड है, कौन धोएगा, कहाँ सूखेगा तुम्हे तो कुछ करना ...
बहुत सुन्दर कहानी अंकिता जी! एक पीढ़ी लांघ कर ममता व कर्तव्य-निष्ठा का बोध श्रेयन्स में तो आया। जब हम समय चूक जाते हैं तो पछतावे का भाव उस बीते समय को कहाँ लौटा पाता है? हीरा के पास भी अब केवल पछतावा ही शेष रह गया है।
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बहुत सुन्दर कहानी अंकिता जी! एक पीढ़ी लांघ कर ममता व कर्तव्य-निष्ठा का बोध श्रेयन्स में तो आया। जब हम समय चूक जाते हैं तो पछतावे का भाव उस बीते समय को कहाँ लौटा पाता है? हीरा के पास भी अब केवल पछतावा ही शेष रह गया है।
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