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नियति का फेर

4.4
94920

सुबह उठते ही फिर वही शोर शराबा सुनाई दिया। पड़ोस के घर में हीरा अपनी ९० वर्षीय माँ को भला बुरा सुना रहा था| ''आज फिर से लघुशंका बिस्तर में इतनी ठण्ड है, कौन धोएगा, कहाँ सूखेगा तुम्हे तो कुछ करना ...

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लेखक के बारे में
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अंकिता सिंह

पुरस्कार मायने नहीं करता, तिरस्कार न मिले कामना है यही🙏😊

समीक्षा
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  • author
    Annapurna Mishra
    30 డిసెంబరు 2018
    भावनात्मक कहानी है।काफी फिल्में बन चुकी हैँ इस विषय पर।बस एक बात मेरी समझ कभी नहीं आया--लायक पोते नालायक बेटे क्यों बन जाते हैं?
  • author
    Sangpram Thakur
    10 జనవరి 2019
    हृदयस्पर्शी कहानी, एक बेहतरीन और उम्दा रचना 😍😍👌👌👌👏👏👏
  • author
    16 ఆగస్టు 2019
    बहुत सुन्दर कहानी अंकिता जी! एक पीढ़ी लांघ कर ममता व कर्तव्य-निष्ठा का बोध श्रेयन्स में तो आया। जब हम समय चूक जाते हैं तो पछतावे का भाव उस बीते समय को कहाँ लौटा पाता है? हीरा के पास भी अब केवल पछतावा ही शेष रह गया है।
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    Annapurna Mishra
    30 డిసెంబరు 2018
    भावनात्मक कहानी है।काफी फिल्में बन चुकी हैँ इस विषय पर।बस एक बात मेरी समझ कभी नहीं आया--लायक पोते नालायक बेटे क्यों बन जाते हैं?
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    Sangpram Thakur
    10 జనవరి 2019
    हृदयस्पर्शी कहानी, एक बेहतरीन और उम्दा रचना 😍😍👌👌👌👏👏👏
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    16 ఆగస్టు 2019
    बहुत सुन्दर कहानी अंकिता जी! एक पीढ़ी लांघ कर ममता व कर्तव्य-निष्ठा का बोध श्रेयन्स में तो आया। जब हम समय चूक जाते हैं तो पछतावे का भाव उस बीते समय को कहाँ लौटा पाता है? हीरा के पास भी अब केवल पछतावा ही शेष रह गया है।