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निर्भया

4.2
672

अंदरूनी कश्मकश को बुलंद कर चलना है अब, इस घने तूफान में झुके हुए ही सही, जड़ को मजबूत कर बढ़ना है अब, चैन न आएगा जब तक ख़ौफ़ में जीती रहूंगी मैं, गिर संभल उठकर लड़ना पड़ेगा अब, किसी के सहारे की चाह नहीं है ...

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लेखक के बारे में
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अनुकेत जैन
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Meera Sajwan "मानवी"
    26 సెప్టెంబరు 2018
    बेहतर
  • author
    Aarti Yadav "Yaduvanshi"
    22 మే 2020
    बहुत खूब जी
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    Meera Sajwan "मानवी"
    26 సెప్టెంబరు 2018
    बेहतर
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    Aarti Yadav "Yaduvanshi"
    22 మే 2020
    बहुत खूब जी