थी पेड़ के नीचे बैठी वो... यमुना तट को तकती तकती...
ना सोये कभी.. ना रोये कभी... उन आँखों को... ये समझाती...
हे नयन कमल... मेरे चक्षु ... अब कान्हा तुमको भूल गया...
अब क्यों खोजे? सांवरे नयन ... क्या ...
बहुत सुंदर कविता ।कुछ जगह उर्दू शब्द लिए हैं पर अब तो वैसे भी हिंदी मैं उर्दु और कुछ दूसरी भाषाएँ घुल मिल गई है। राधा जी कि विरह व्यथा को सुंदरता से दर्शाया है।अचछी कोशिश है।👌
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बहुत सुंदर कविता ।कुछ जगह उर्दू शब्द लिए हैं पर अब तो वैसे भी हिंदी मैं उर्दु और कुछ दूसरी भाषाएँ घुल मिल गई है। राधा जी कि विरह व्यथा को सुंदरता से दर्शाया है।अचछी कोशिश है।👌
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