उसकी यादों का बस सहारा है। एक नदी जिसके दो किनारा है। इस तरफ तुम्हारा और उस तरफ हमारा है। बीच भवर में फसा एक बेसहारा है। पुकार उसकी अब विफल चली जाती है। जल जब जब सर से उपर बहने लग जाती है। वो ...
वैसे तो पूरी कविता ऐसी है, जिसकी तारीफ करने के लिए शब्द नहीं हैं हमारे पास... पर दो लाइन दिल को छू गई..
समा जाऊँ नदी की इस जलधारा में..
या खुद से कोशिश बार बार करूं..
हो सके तो कविराज को अपनी ही लिखी दूसरी लाइन पर अमल करना चाहिए 🌺🌺🌺🌺
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