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नयी शुरूआत

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4.3

मानसी काफी देर से खुद को शीशे में एकटक निहारे जा रही थी. अपने लम्बे सुनहरे घुंघराले बालो को सुलझा रही थी. आज अपने आप पर फिर से उसे गुमान हो रहा था, गुरूर महसूस कर रही थी वह. यह शायद कल रात के नशे का ...