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नशे की रात ढल गयी 2

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उठ जाग मुसाफिर भोर भयी अब रैन कहाँ जो सोवत है..एनाउन्स्मेंट हो रहा है..समान वगैरह समेंट लें ... ये कौन सा स्टेशन है भाई! ..? हड़बड़ाकर उठ बैठता हूँ ..अगल-बगल तो कोई भी नहीं .. मगर आईना कभी झूठ नहीं ...

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दया शंकर शरण

लेखक

समीक्षा
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    Seema Sinha
    04 ஏப்ரல் 2017
    Interesting and philosophical
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    Seema Sinha
    04 ஏப்ரல் 2017
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