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नशा

4.5
2770

प्रेम का नशा और सत्ता का नशा जब टकराये तो . . . ?

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लेखक के बारे में

अपने बारे मे. . . अपने बारे मे मै क्या लिखूं? मैं कभी समझ नही पाता हूँ, और शायद इसी लिए मै कहानियाँ लिखता हूँ ; और इन्हीं मे अपने आप को तलाशता हूं । मै इनसे अलग हूं भी नही, फिर अलग से क्या कहूँ. . . . यह उन दिनों की बातें हैं, जब दिन सुनहरे हुआ करते और आसमान नीला । बिल्कुल साफ शफ्फाक । मै एक विशिष्ट शहर भिलाई का रहने वाला हूं; और भिलाई के ऊपर उन दिनो आसमान बिलकुल खुला खुला सा हुआ करता, और इसके दक्षिण में क्षितिज पर एक तसवीर थी बहुत सारी चिमनियों और कुछ विचित्र आकृतियों की । वे रहस्यमयी चिमनियां , अकसर बहुत सारा गाढ़ा गाढ़ा धुआँ उगलती । कभी दूध सा उजला सफेद, कभी गेरुआ लाल जिसके बारे मे मुझे लगता कि उस सफेद धुयें मे ही ईट पीसकर मिला देते होंगे और कभी काला धुआँ, जो मै सोचता कि ज़रूर, चिमनी के नीचे डामर(कोलतार) जलाया जारहा होगा जैसे सङक पर बिछाने के लिए जलाते हैं । "वो क्या है?" मै पूछता । "वो कारखाना है ।" दादा दादी बताया करते "तेरे अब्बा वहीं काम करते हैं ।" मेरे अब्बा एक विशिष्ट इनसान थे, वे अथक संघर्षशील, मृदुभाषी और मुस्कुराकर बात करने वाले थे । उन जैसा दूसरा इनसान मैने दूसरा नही देखा । वे जहाँ जाते लोग उनसे प्यार करने लगते । उनके व्यक्तित्व मे जादू था । जादू तो उन रातों का भी कम न था, जब अंधेरे के दामन पर जगह पुराने दौर के बिजली के लैम्प पोस्ट के नीचे धुंधली पीली रौशनी के धब्बे पङ जाते । जब कोई चीज उन धब्बों से होकर गुज़रती तो नज़र आने लगती और बाहर होती तो गायब होजाती । एक और जादू आवाज़ का होता । रात की खामोशी पर कुछ रहस्यमयी आवाज़ें तैरती . . . . जैसे - ए विविध भारती है. . . या हवा महल. . . . और बिनाका गीतमाला की सिग्नेचर ट्यून या अमीन सयानी की खनकती शानदार आवाज़ । ये आवाज़ें रेडियो से निकलती और हर खास ओ आम के ज़हन पर तारी हो जाती । मेरे खयाल से उन बङे बङे डिब्बों (रेडियो) मे छोटे छोटे लोग कैद थे जो बिजली का करंट लगने पर बोलने और गाने लगते । और उन्हें देखने के लिये मै रेडियो मे झांकता और डाट खाता कि- करंट लग जायेगा । अब्बा जब रेडियो को पीछे से खोलकर सफाई या और कोई काम करते तो मै उसमे अपना सिर घुसाकर जानने की कोशिश करता कि वे छोटे छोटे लोग किस जगह होंगे , एकाध बार मै रहस्योदघाटन के बिलकुल करीब पहुँच भी गया लेकिन हर बार अब्बा डाटकर भगा देते । क्या अब्बा को यह राज़ मालूम था ? मै अब तक नही जान पाया । किसी रात जब हम बाहर सोते तो आसमान पर अनगिनत तारों को मै गिनने की कोशिश करता । ठीक है वे अनगिनत हैं , फिर भी इनकी कोई तादाद तो होगी । मै उन्हे गिनकर दुनिया को उनकी तादाद बता दूंगा, फिर कोई नही कहेगा कि आसमान मे अनगिनत तारे होते हैं । अफसोस !! हर बार मुझे नींद आ जाती और मै यह काम अब तक पूरा नही कर पाया और अब तो शहर के आसमान पर गिनती के तारे होते हैँ, जिन्हें ढूँढ ढूँढ कर गिनना पङता है ; लेकिन लोग अब भी यही कहते हैं कि आसमान में अनगिनत तारे हैं । खैर! रातें जब सर्दी की होतीं, हम दादा दादी के साथ अपनी बाङी मे छोटी सी आग जलाकर आग तापते आस पङोस के और बच्चे भी आ जाते और दादा दादी की कहानियों का दौर शुरू हो जाता । दादी के पास उमर अय्यार की जम्बिल के नाम से कहानियों का खजाना था और उमर अय्यार मेरा पसंदीदा कैरेक्टर था । कई बार वो मोहम्मद हनीफ की कहानियां भी सुनाती । दादा की कहानियाँ मुख्तलिफ होती और वे मुझे अब भी याद हैं, उन्हें मैने अपने बच्चों को उनके बचपन मे सुनाई । हम बी एस पी के क्वार्टर में रहते जहां हमारे क्वार्टर के पीछे ही गणेशोत्सव होता । जिसमे नाटक, आरकेस्ट्रा जैसे कई आयोजन होते । बस यहीं से नाटक का शौक पैदा हुआ और इसके लिए मैने एक नाटक(एकांकी-प्रहसन) लिखा 'कर्ज़' इसका मंचन हुआ तब मै कक्षा छठवीं मे था । इसके बाद ज़िंदगी मे कई अकस्मिक मोड़ आये जिन्हे बताने के लिये बहुत वक्त और बहुत जगह की दरकार है । तो मुख्तसर मे यही कि नवमी कक्षा मे मै एक साप्ताहिक मे संवाददाता बन गया । दसवीं मे था तब पहली कहानी ‘क ख ग घ …’ प्रकाशित हुई जो जलेस की बैठक मे खूब चर्चा मे आई । तभी रेडिओ से एक कहानी प्रसारित हुई जिसके लिये पहली बार मानदेय प्राप्त हुआ । लेकिन लेखक बनने और दुनिया भर मे घुमते रहने के मेरे सपने ने मेरे घर मे मुझे भारी संकट मे डाल दिया । मेरे अब्बा से मेरे रिश्ते बिगड़ गये, वे चाहते थे कि मै अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगाऊं, खूब तालीम हासिल करूं और उसके बाद बी एस पी मे नौकरी करूं । वे मुझसे बहुत ज़्यादह उम्मीद रखते थे और अपने टूटे हुये ख्वाबों को मेरी ज़िंदगी मे साकार होते देखना चाहते थे, तो वे कुछ गलत नही चाहते थे, क्योंकि बेटे की कहानी तो बाप की कहानी का ही विस्तार होती है । लेकिन मेरे अपने अब्बा से रिश्ते बिगड़ गये और यह हाल तब तक रहा जब उस दिन सुबह – सुबह मेरी अम्मी बद हवास सी मुझे जगा रही थी । नींद से जागते ही पता चला मेरे सर से आसमान छिन गया है; सुनते ही मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई । तीन बहन और तीन भाईयों मे सबसे बड़ा बेटा था मै । अब्बा, जो हमेशा मेरी फ़िक्र मे रहते थे और मै यह बात अच्छी तरह जानते हुये भी कभी उनसे कहता नही, उस रात ट्रक एक्सिडेंट मे दुनियां से रुख्सत हुये तो हम दोनो के बीच बातचीत तक बंद थी । मै अपने दिल की बात उन्हे बताना चाहता था लेकिन …… वह हादसा मेरी ज़िंदगी का बड़ा सबक बन गया । अफ़सोस ! ज़िंदगी सबक तो देती है लेकिन उसपर अमल करने के लिये दूसरा मौका नही देती । अब मेरे सामने दूसरा विकल्प नहीं था, नौकरी के सिवाय । फ़िर वह वक्त भी आया जब लेखन और नौकरी के बीच एक को चुनना था और निश्चित रूप से मैने चुना नौकरी को । मैने अपना लिखा सारा साहित्य रद्दी मे बेच दिया, अपनी सारी पसंदीदा किताबों का संग्रह भी । मैने अपने अंदर के लेखक की हत्या की और अपने अंदर ही कहीं गहराइयों मे दफ़न कर दिया । मै मुतमईन था कि उस लेखक से पीछा छूटा लेकिन करीबन चौथाई सदी बाद किसीने मुझसे मेरे ही नाम के एक पुराने लेखक का ज़िक्र किया और मै चुप रहा । किस मुंह से कहता कि वह मै ही था । वह दिन बड़ी तड़प के साथ गुज़रा और रात को जनम हुआ एक कहानी का ‘एक लेखक की मौत’ । दरअसल वह एक लेखक के पुनर्जनम की कहानी थी । वह लेखक जो आज आपसे मुखातिब है… आपसे रू-ब-रू है …

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    24 सितम्बर 2019
    नशा-चाहे दौलत हो,या पद का...असर दिखाता जरुर है,,आपकी कथा में प्रवाह/शैली/परिवेश का सजीव चित्रण पाठक को बांधे रहता है,,, बेग जी! यही आपके कहानी की सफलता है👌👌💐😊
  • author
    PBhattacharjee Chakraborty
    06 अगस्त 2020
    bahat achhe.bahat mubarak.age bhi likhiye
  • author
    29 मई 2019
    बहुत बढ़िया
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    24 सितम्बर 2019
    नशा-चाहे दौलत हो,या पद का...असर दिखाता जरुर है,,आपकी कथा में प्रवाह/शैली/परिवेश का सजीव चित्रण पाठक को बांधे रहता है,,, बेग जी! यही आपके कहानी की सफलता है👌👌💐😊
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    PBhattacharjee Chakraborty
    06 अगस्त 2020
    bahat achhe.bahat mubarak.age bhi likhiye
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    29 मई 2019
    बहुत बढ़िया