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नर्क

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हे मानव..! कहाँ पहुच गया है। काला अँधकार हो जैसे गागर में। नर्क द्वार है खड़ा,देख सही, पाप भरा पड़ा हो जैसे सागर में। लुट लालच लोभ भर मन है । पाँव पसार न तु फटे चादर में। मनु-मनुज का है ना अनुज का, ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Akankshi Singh
    20 सितम्बर 2021
    nice
  • author
    Ravindra Narayan Pahalwan
    15 अक्टूबर 2018
    रचना अच्छी लगी ...
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    Akankshi Singh
    20 सितम्बर 2021
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    Ravindra Narayan Pahalwan
    15 अक्टूबर 2018
    रचना अच्छी लगी ...