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नारी के आंसु

4.7
14

कौरव कंस और रावण के सामने, द्रौपदी देवकी और सीता के आंसु, किसी फायदे के लिए नहीं बहते। ये तो उनके अपमान दर्द और बेबसी की, कहानी है कहते। हाँ एक औरत रोती है। तब, जब उसके सम्मान को तार तार ...

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लेखक के बारे में
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Sushma Jain
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    sushma gupta
    03 सितम्बर 2019
    अगर पीर आंखों से बह कर नहीं निकलेगी ..तो फिर वह ज्वाला बनकर निकलेगी जो संसार को जलाकर राख कर देगी ..इसलिए आंसू ही बेहतर है संसार की भलाई के लिए.. कोई इसे कमजोरी समझे या कायरता ..इससे स्त्रियों को फर्क नहीं पड़ता, बहुत बढ़िया लिखा है आपने💐👌💐👌💐👌
  • author
    Rajendra Mishra "राजन"
    01 सितम्बर 2019
    हृदय स्पर्शी रचना है आपकी बहुत ही खूबसूरत लिखा है आपने
  • author
    31 अगस्त 2019
    बहोत जबर्दस्त शानदार रचना
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    sushma gupta
    03 सितम्बर 2019
    अगर पीर आंखों से बह कर नहीं निकलेगी ..तो फिर वह ज्वाला बनकर निकलेगी जो संसार को जलाकर राख कर देगी ..इसलिए आंसू ही बेहतर है संसार की भलाई के लिए.. कोई इसे कमजोरी समझे या कायरता ..इससे स्त्रियों को फर्क नहीं पड़ता, बहुत बढ़िया लिखा है आपने💐👌💐👌💐👌
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    Rajendra Mishra "राजन"
    01 सितम्बर 2019
    हृदय स्पर्शी रचना है आपकी बहुत ही खूबसूरत लिखा है आपने
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    31 अगस्त 2019
    बहोत जबर्दस्त शानदार रचना