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नपुंसक पति

4.4
7483

एक ऐसी पत्नी की कहानी जिसका पति भावनात्मक नपुंसकता का शिकार है........

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लेखक के बारे में

ख़ाक के बने हैं एक रोज़ ख़ाक में ही मिल जायेंगे , न कुछ लेकर आये हैं न कुछ लेकर जायेंगे। इक रोज़ न रहेगी हमारी हस्ती भी इस जहान में, पर मरने के बाद लोग ढूढें हमें आसमान में । ऐसी पहचान बनाने आये ,हैं ऐसी पहचान बना के जायेंगे।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    30 अक्टूबर 2018
    कहानी प्रभाव शाली है समाज मे इस तरह के पात्र सुगमता से देखे जा सकते है वाजपेयी जी ने उन्हें साहस के साथ नपुंसक की श्रेणी मे रखा हैं ।कहानी पाठक को बांधे रखती है बहुत बधाई ।
  • author
    Deepak SINGLA
    24 अक्टूबर 2018
    ऐसी न जाने कितनी शीतल आज समाज मे अपनी ज़िंदगी को पल पल मोत के घाट उतार रही है, सिर्फ एक अचे दिन की उम्मीद में....😢
  • author
    23 अक्टूबर 2018
    लघुकथा मे अन्त पाठक पर छोडे।स्वय ना कहे।पाठक मजबूर हो जाऐ सोचने के लिये। वैसे कहानी बहुत अच्छी है थोडा कसाव लाऐ।मुझे भी पढे।अन्यथा ना लेना।
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    30 अक्टूबर 2018
    कहानी प्रभाव शाली है समाज मे इस तरह के पात्र सुगमता से देखे जा सकते है वाजपेयी जी ने उन्हें साहस के साथ नपुंसक की श्रेणी मे रखा हैं ।कहानी पाठक को बांधे रखती है बहुत बधाई ।
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    Deepak SINGLA
    24 अक्टूबर 2018
    ऐसी न जाने कितनी शीतल आज समाज मे अपनी ज़िंदगी को पल पल मोत के घाट उतार रही है, सिर्फ एक अचे दिन की उम्मीद में....😢
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    23 अक्टूबर 2018
    लघुकथा मे अन्त पाठक पर छोडे।स्वय ना कहे।पाठक मजबूर हो जाऐ सोचने के लिये। वैसे कहानी बहुत अच्छी है थोडा कसाव लाऐ।मुझे भी पढे।अन्यथा ना लेना।