ख़ाक के बने हैं एक रोज़ ख़ाक में ही मिल जायेंगे ,
न कुछ लेकर आये हैं न कुछ लेकर जायेंगे।
इक रोज़ न रहेगी हमारी हस्ती भी इस जहान में,
पर मरने के बाद लोग ढूढें हमें आसमान में ।
ऐसी पहचान बनाने आये ,हैं ऐसी पहचान बना के जायेंगे।
सारांश
ख़ाक के बने हैं एक रोज़ ख़ाक में ही मिल जायेंगे ,
न कुछ लेकर आये हैं न कुछ लेकर जायेंगे।
इक रोज़ न रहेगी हमारी हस्ती भी इस जहान में,
पर मरने के बाद लोग ढूढें हमें आसमान में ।
ऐसी पहचान बनाने आये ,हैं ऐसी पहचान बना के जायेंगे।
कहानी प्रभाव शाली है समाज मे इस तरह के पात्र सुगमता से देखे जा सकते है वाजपेयी जी ने उन्हें साहस के साथ नपुंसक की श्रेणी मे रखा हैं ।कहानी पाठक को बांधे रखती है बहुत बधाई ।
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कहानी प्रभाव शाली है समाज मे इस तरह के पात्र सुगमता से देखे जा सकते है वाजपेयी जी ने उन्हें साहस के साथ नपुंसक की श्रेणी मे रखा हैं ।कहानी पाठक को बांधे रखती है बहुत बधाई ।
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