समाज ने दो प्यार करने वालों के लिए एक रिश्ता बना दिया है, पति-पत्नी का रिश्ता। इस रिश्ते पर जायज़ रिश्ते का ठप्पा लगाकर इनके दायरे भी समाज ने ही तय करे हैं। क्या हो जब इस जायज़ रिश्ते को भी नाजायज़ ...
बेहद सशक्त लेखन और अच्छा चरित्र बनाया आपने। नायिका को थोड़ा और मजबूत दिखाया जा सकता था।
वास्तव में नायिका को पलट कर नायक के गाल पर एक थप्पड़ रसीद करना चाहिए था क्योंकि उसे तो पता था कि वो किस से बात कर रही थी।पर क्या उसके पति परमेश्वर को पता था???? एक पुरुष चाहे खुद कितने गर्त में गिर जाए पर उसकी प्राथमिकता हमेशा स्त्री की पवित्रता होती है।
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बेहद सशक्त लेखन और अच्छा चरित्र बनाया आपने। नायिका को थोड़ा और मजबूत दिखाया जा सकता था।
वास्तव में नायिका को पलट कर नायक के गाल पर एक थप्पड़ रसीद करना चाहिए था क्योंकि उसे तो पता था कि वो किस से बात कर रही थी।पर क्या उसके पति परमेश्वर को पता था???? एक पुरुष चाहे खुद कितने गर्त में गिर जाए पर उसकी प्राथमिकता हमेशा स्त्री की पवित्रता होती है।
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