बदलता वक्त हमारे देखते-देखते वक्त सही में बहुत बदल गया है कभी हम एक दो कमरों में सारा परिवार प्रेम की डोर में बँधा सुविधाओं के बिना अपनी छोटी सी दुनिया में रूखा सूखा खाकर भी प्रसन्न रह लेते थे । ...
बहुत ही सार्थक और सटीक लिखा मैम.. पहले के जीवन और अभी के जीवन में जमीन आसमान का अंतर आ गया है जहां पहले लोग कम सुविधाओं में ही खुश थे वही अब इतनी सुविधाएं होने के बाद भी चैन नहीं.. आधुनिकता के पीछे भागते भागते इंसान अपना ही मूल्य खोते जा रहा है.. ये भी एकदम सटीक कहा कि इन सबके पीछे तब तक ही भागना सही है जब तक हमारा चारित्रिक और मानवीय पतन सुरक्षित रहे.. कहानी बहुत ही शिक्षाप्रद थी..विकास जो जिला शिक्षा अधिकारी था वो अपने से तेज अनुराग को इतना जमीन से जुड़ा देखकर सोचने पर मजबूर हो गया और उसका घमंड वही धरा का धरा रह गया.. अनुराग की तरह सोच रखने वाले बहुत कम है.. सच में अनुराग पर यह लाइन बिल्कुल ठीक बैठता है कि मानवीय मूल्यों के सामने सारे ऐशो आराम फीके रह गए..हमेशा की तरह बहुत ही बहुत खूबसूरत प्रेरक शिक्षाप्रद और उम्दा लेख मैम...👌👌👌👌🌹🌹🌹🌹♥️♥️♥️♥️💚💚💚💚💞💞💞💞💞 🙏🙏🙏
अंत का जोक 👌👌😂😂😂सारी दुनिया ही बिछा दी..😄😄👍
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बिल्कुल सही एवं सार्थक प्रस्तुति आपकी, यांत्रिक सभ्यता ने बहुत कुछ छीन लिया है हमसे, चारित्रिक पतन, मानवीय संवेदनाओं का क्षरण भी हो ही चुका है, पता नहीं आगे विकास के नाम पर कहाँ पहुँच जाएगा इंसान... ज़रूरत है सतर्क रहने की, संभलने की... उत्कृष्ट एवं उत्तम विचार आपके,
बंदा वादे का पक्का निकला... मजेदार 👌👌🙏🌷
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