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नहीं बिकते

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4.5

किसी भी भाव अब ईमान के ज़ेवर नहीं बिकते, अगर ऐसे न होते हम हमारे घर नहीं बिकते. हामारे सोच में ही खोट है शायद कहीं कोई, खुले बाज़ार में वरना कभी ख़ंजर नहीं बिकते. परिंदे मार कर खा जाए कोई ये तो ...