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नाम सर्वनाम....

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भारतीय लोक जीवन में हिन्दी भाषियोें का नामकरण भी एक कुतुहलता एवं आकर्षण का क्षेत्र रहा है। वैसे तो साधारणजन अपने पुरोहितों की पत्रानुसार ग्रहादि राशि इत्यादि देखकर अपने जातकों के नाम रखने के पक्षधर ...

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लेखक के बारे में

वृक्ष का ऊपरी हिस्सा चाहे कितना भी निर्जीव क्यों न हो जाए, चाहे एक पत्ता न बचे , चाहे तने में भी कोई जान न बचे ,परन्तु वृक्ष तब तक जीवित है जब तक उसकी जड़ नहीं मरती। कोई तो ऐसी ऋतु आएगी जब वो भी जी उठेगी... जब वृक्ष दोबारा खिलखिलाएगा। तो आइए जड़ों से जुड़ते हैं। उनसे जुड़ते हैं जो कभी कुछ रच गए और हम आज उन्हें सहेजें तो ही बेहतर है। वरना आने वाले समय में हम कहाँ पड़े होंगे, किसे खबर....? हमारी रचनाओं में जुड़िए... उनसे... जिनकी किसी ने न लिखी... हम... एडवोकेट श्रीकृष्ण मिश्र, सिविल कोर्ट... जन्म- 18 नवम्बर 1946 पिता- स्वर्गीय श्री गंगा प्रसाद मिश्र माता- स्वर्गीय श्रीमती सत्यवती मिश्र पत्नी- स्वर्गीय श्रीमती कुसुम मिश्र... हम कर्म से... एक कवि.. एक साहित्यकार.. एक उपन्यासकार.. एक इतिहास प्रेमी.. एक समीक्षाकार... एक कहानीकार.. एक डायरी लेखक... संस्मरण भी लिखते हैं... 😊

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    Vandana Mishra
    10 अगस्त 2023
    पढ़कर हंसी तो बहुत आ रही थी,,लेकिन मानना पड़ेगा कि इतने साधारण से नाम को लेकर भी आपने एक लेख लिख डाला। बहुत अच्छा लगा पढ़कर। कजने को तो ये सारी बातें साधारण सी हो हैं,,लेकिन आपकी लेखन शैली इतनी कलात्मक है कि हम बंधे रह जाते हैं उसमें। सबसे बढ़कर आपको पढ़कर ज्ञान की बढ़ोत्तरी ही हो रही है। ये तो हर सौभाग्य है कि हमे आपको पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। वैसे सच कहूं तो मैं भी जब उल्टे सीधे नाम सुनती हूं तो सोचती हूं कि आखिर क्या सोचकर इसका ये नाम रखा गया होगा। हमारे गांव में भी बड़े उटपटांग नाम वाले हैं, शुरू शुरू में तो बहुत हसी आती थी लेकिन अब तो आदत बन गई है सुनने की। सूबेदार,कप्तान,डॉक्टर,वकील, कलेक्टर इत्यादि ऐसे नाम हैं जो बचपन से ही कुछ बच्चों के मां बाप दे देते हैं,,जबकि बड़े होने के बाद वास्तविकता से कोसों दूर होते है ये। फिलहाल बस यही कहूंगी आपको पढ़ना बहुत अच्छा लग रहा है🙏🙏
  • author
    Jaya Rana
    15 अप्रैल 2022
    "रबड़ी जीभ को भी आंखो भी भाती है"🤭🤭 दोबारा उत्तम रचना साथ ही विषय भी अनोखा चुना गया,, मैं छोटी थी तब अपने बुआ के गांव को बचपन से ही "गालमपुर" सुनती आई थी लेकिन बड़े होते होते मालूम पड़ा कि वो "गालीबपुर" है हरियाणा से जुड़ा हुआ ओर दिल्ली का आखिरी गांव!!
  • author
    अज्ञात
    06 नवम्बर 2024
    पूरा पढ़ने के बाद एक बात पर हंसी रोक ही नहीं पाए हम 'जरा कटोरी लाना तो' सच में बेहतरीन बाबा।👏👏
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    Vandana Mishra
    10 अगस्त 2023
    पढ़कर हंसी तो बहुत आ रही थी,,लेकिन मानना पड़ेगा कि इतने साधारण से नाम को लेकर भी आपने एक लेख लिख डाला। बहुत अच्छा लगा पढ़कर। कजने को तो ये सारी बातें साधारण सी हो हैं,,लेकिन आपकी लेखन शैली इतनी कलात्मक है कि हम बंधे रह जाते हैं उसमें। सबसे बढ़कर आपको पढ़कर ज्ञान की बढ़ोत्तरी ही हो रही है। ये तो हर सौभाग्य है कि हमे आपको पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। वैसे सच कहूं तो मैं भी जब उल्टे सीधे नाम सुनती हूं तो सोचती हूं कि आखिर क्या सोचकर इसका ये नाम रखा गया होगा। हमारे गांव में भी बड़े उटपटांग नाम वाले हैं, शुरू शुरू में तो बहुत हसी आती थी लेकिन अब तो आदत बन गई है सुनने की। सूबेदार,कप्तान,डॉक्टर,वकील, कलेक्टर इत्यादि ऐसे नाम हैं जो बचपन से ही कुछ बच्चों के मां बाप दे देते हैं,,जबकि बड़े होने के बाद वास्तविकता से कोसों दूर होते है ये। फिलहाल बस यही कहूंगी आपको पढ़ना बहुत अच्छा लग रहा है🙏🙏
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    Jaya Rana
    15 अप्रैल 2022
    "रबड़ी जीभ को भी आंखो भी भाती है"🤭🤭 दोबारा उत्तम रचना साथ ही विषय भी अनोखा चुना गया,, मैं छोटी थी तब अपने बुआ के गांव को बचपन से ही "गालमपुर" सुनती आई थी लेकिन बड़े होते होते मालूम पड़ा कि वो "गालीबपुर" है हरियाणा से जुड़ा हुआ ओर दिल्ली का आखिरी गांव!!
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    अज्ञात
    06 नवम्बर 2024
    पूरा पढ़ने के बाद एक बात पर हंसी रोक ही नहीं पाए हम 'जरा कटोरी लाना तो' सच में बेहतरीन बाबा।👏👏