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न रहे तुम श्रेष्ठ

4.7
302

तुम श्रेष्ठ थे तुम पुरुष थे मेरा अभिमान थे तुम जब पिता थे, भाई थे, मित्र थे मेरी कोख को संपूर्णता प्रदान करके मुझे ब्रम्हाण्ड का सबसे सुंदर नाम माँ देने वाले मेरी संतान थे। परन्तु स्त्री का मर्म न ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    16 अगस्त 2018
    लाज़वाब रचना।।।कास पुरुष ये समझ पाते की श्रेष्टता किस्मे हैं।। दारुन कविता।।।
  • author
    शैलेश सिंह "शैल"
    29 अक्टूबर 2018
    शब्द ऐसे हीं नही निकल आते।। मन साफ ।। हृदय पाक ।। पवित्र आत्मा से कविता निकली है बहुत उत्तम रचना और सच्चाई है ।। मैं दावे के साथ कह सकता हु लेखक बहुत ही अच्छे स्वभाव और मिलनसार है,, धन्यवाद आपको।। ।।
  • author
    Ashutosh Mishra
    11 फ़रवरी 2020
    𝒃𝒂𝒉𝒖𝒕 𝒔𝒖𝒏𝒅𝒂𝒓 𝒓𝒂𝒄𝒉𝒏𝒂 𝒌𝒂𝒂𝒔𝒉 𝒂𝒂𝒋 𝒌𝒂 𝒊𝒏𝒔𝒂𝒂𝒏 𝒚𝒆 𝒔𝒂𝒃 𝒔𝒂𝒎𝒂𝒋𝒉 𝒑𝒂𝒕𝒂 𝒂𝒂𝒑𝒌𝒐 𝒔𝒂𝒍𝒂𝒂𝒂𝒎 𝒉𝒂𝒊
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    16 अगस्त 2018
    लाज़वाब रचना।।।कास पुरुष ये समझ पाते की श्रेष्टता किस्मे हैं।। दारुन कविता।।।
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    शैलेश सिंह "शैल"
    29 अक्टूबर 2018
    शब्द ऐसे हीं नही निकल आते।। मन साफ ।। हृदय पाक ।। पवित्र आत्मा से कविता निकली है बहुत उत्तम रचना और सच्चाई है ।। मैं दावे के साथ कह सकता हु लेखक बहुत ही अच्छे स्वभाव और मिलनसार है,, धन्यवाद आपको।। ।।
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    Ashutosh Mishra
    11 फ़रवरी 2020
    𝒃𝒂𝒉𝒖𝒕 𝒔𝒖𝒏𝒅𝒂𝒓 𝒓𝒂𝒄𝒉𝒏𝒂 𝒌𝒂𝒂𝒔𝒉 𝒂𝒂𝒋 𝒌𝒂 𝒊𝒏𝒔𝒂𝒂𝒏 𝒚𝒆 𝒔𝒂𝒃 𝒔𝒂𝒎𝒂𝒋𝒉 𝒑𝒂𝒕𝒂 𝒂𝒂𝒑𝒌𝒐 𝒔𝒂𝒍𝒂𝒂𝒂𝒎 𝒉𝒂𝒊