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न जाने तुम कब आओगे

4.5
32

सहर अब शाम बन चुकी न जाने तुम कब आओगे फ़िज़ा भी रंग बदल चुकी न जाने तुम कब आओगे सितारे न जाने कहाँ खो गए नज़ारे सब खामोश क्यों हो गए हवा भी अब तो बदल चुकी न जाने तुम कब आओगे शमा हर महफ़िल में जल गई ये ...

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लेखक के बारे में
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Meena Gulyani

सेवानिवृत वरिष्ठ अनुदेशिका कविता लिखना मेरा शौक है

समीक्षा
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  • author
    अभिलाषा चौहान
    11 नवम्बर 2018
    बहुत ही सुन्दर रचना 🙏
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    अभिलाषा चौहान
    11 नवम्बर 2018
    बहुत ही सुन्दर रचना 🙏