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मुसाफिर

4.6
4182

रात का अंधेरा था। हर जगह सन्नाटा ही सन्नाटा पसरा हुआ था। मंद गति से वायु बह रही थी। एक मुसाफिर थका हारा। अपने आराम के लिए जगह तलाश रहा था। यकायक एक आवाज सुनकर वह चौंका। आवाज में बड़ी मिठास घुली ...

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लेखक के बारे में
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Roli mishra
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    K S Bisht
    14 ഏപ്രില്‍ 2019
    अगर हर इंसान समझ जाऐ कि वह इस संसार में एक मुसाफिर ही है और अंत में हर वस्तु को छोड़ कर जाना पडे़गा तो उसके सारे कष्ट दूर हो जाऐंगे ।
  • author
    Madhu Bagai
    12 ഒക്റ്റോബര്‍ 2019
    अच्छे उद्देश्य को लेकर लिखी गई सशक्त रचना। ये दुनियां मुसाफ़िरखाना ही तो है
  • author
    Champa Kothari
    14 ഏപ്രില്‍ 2019
    हर इंसान इसी मृगतृष्णा में ही तो जी रहा है।सत्य उजागर करती एक उत्कृष्ट कहानी
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    K S Bisht
    14 ഏപ്രില്‍ 2019
    अगर हर इंसान समझ जाऐ कि वह इस संसार में एक मुसाफिर ही है और अंत में हर वस्तु को छोड़ कर जाना पडे़गा तो उसके सारे कष्ट दूर हो जाऐंगे ।
  • author
    Madhu Bagai
    12 ഒക്റ്റോബര്‍ 2019
    अच्छे उद्देश्य को लेकर लिखी गई सशक्त रचना। ये दुनियां मुसाफ़िरखाना ही तो है
  • author
    Champa Kothari
    14 ഏപ്രില്‍ 2019
    हर इंसान इसी मृगतृष्णा में ही तो जी रहा है।सत्य उजागर करती एक उत्कृष्ट कहानी