इन्होंने भारतीय भाषा केंद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से प्रो. देवेंद्र चौबे के निर्देशन में ‘20वीं शताब्दी के प्रारंभिक दो दशकों की हिंदी पत्रिकाओं में स्त्री जीवन के सवाल’ (1900-1920) पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की है। इसके साथ-साथ महेशनारायण की लंबी कविता ’स्वप्न’ (1881) का समाजशास्त्रीय अध्ययन’ विषय पर लघु शोध कार्य कर चुकी हैं। इनके विविध पुस्तकों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित गंभीर एवं विचारोत्तेजक लेख हैं-स्त्री-विमर्श और हिंदी साहित्य (पुस्तकः जन-आंदोलन और हिंदी साहित्य, सं. डॉ. वीरेन्द्र सिंह कश्यप, मानसी पब्लिकेशंस, दिल्ली, 2013), रानी माँ का चबूतराः एक विश्लेषण (मंतव्य-3, सं. हरे प्रकाश उपाध्याय, लखनऊ, मई 2015), स्त्री साहित्य की अवधारणा (’मालती’ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ई-शोध पत्रिका, सं. डॉ. शिवचंद प्रकाश, अलीगढ़, जनवरी-जून 2015), हिंदी सिनेमा और समाज (शोध नवनीत, सं. डॉ. अवधेश प्रताप सिंह, इलाहाबाद, जुलाई 2015), हिंदी पाठ्यक्रम में ’स्त्री साहित्य’ की आवश्यकता (समसामयिक सृजन, सं. महेंद्र प्रजापति, नयी दिल्ली, अक्टूबर-दिसंबर 2015)। इन्होंने प्रसिद्ध आलोचक एवं शोध निर्देशक प्रो. देवेंद्र चौबे के साथ ’हमारे समय का साहित्य’ पुस्तक का सह-संपादन कार्य किया। प्रकाशित कविताओं में आखिर कब? (सृजनलोक, सं. संतोष श्रेयांस, बिहार) और तुम भी जी लो (संवदिया, सं. देवेंद्र कुमार देवेश, बिहार) प्रमुख हैं। आए दिन आप जेएनयू न्यूज, हंस, वर्तमान साहित्य आदि पत्रिकाओं में रिपोर्ट एवं साक्षात्कार का आयोजन करती रहती हैं।
रिपोर्ट की समस्या
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