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मि. वॉलरस

4.4
6332

विंडचाईम हवा में डोला और मेरी नींद खुल गई. मैं एक उदास सपने के भीतर वैसे ही सोया था, जैसे तूफान भरी रात में भटक कर कोई एडवेंचरिस्ट अपने तम्बू में सोए, लगातार तूफान के बदतर हो जाने की आशंका में और उठे ...

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लेखक के बारे में

जन्म : 26 अगस्त 1967, जोधपुर शिक्षा – बी.एससी., एम. ए. (हिन्दी साहित्य), एम. फिल., विशारद ( कथक) प्रकाशित कृतियाँ – कहानी संग्रह - कठपुतलियाँ, कुछ भी तो रूमानी नहीं, बौनी होती परछांई, केयर ऑफ स्वात घाटी, गंधर्वगाथा, अनामा उपन्यास-  शिगाफ़ ,  शालभंजिका,  पंचकन्या अनुवाद – माया एँजलू की आत्मकथा ‘ वाय केज्ड बर्ड सिंग’ के अंश, लातिन अमरीकी लेखक मामाडे के उपन्यास ‘हाउस मेड ऑफ डॉन’ के अंश, बोर्हेस की कहानियों का अनुवाद पुरस्कार, सम्मान और फैलोशिप : कृष्ण बलदेव वैद फैलोशिप – 2007 रांगेय राघव पुरस्कार वर्ष 2010 ( राजस्थान साहित्य अकादमी) कृष्ण प्रताप कथा सम्मान 2011 गीतांजलि इण्डो – फ्रेंच लिटरेरी प्राईज़ 2012 ज्यूरीअवार्ड रज़ा फाउंडेशन फैलोशिप – 2013 अन्य साऊथ एशियन लैग्वेज इंस्टीट्यूट, हायडलबर्ग (जर्मनी) में उपन्यास ‘शिगाफ़’ का अंश पाठ व रचना प्रक्रिया पर आलेख प्रस्तुति. (2011) नौवें विश्व सम्मेलन (2012) जोहांसबर्ग में शिरकत. और सूचना प्रोद्योगिकी और देवनागरी का सामर्थ्य विषय पर पर्चा संप्रति – स्वतंत्र लेखन और इंटरनेट की पहली हिन्दी वेबपत्रिका ‘हिन्दीनेस्ट’ का पंद्रह वर्षों से संपादन.

समीक्षा
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    अंजुलिका चावला
    19 జులై 2019
    29 मिनट का समय लिखा दिखा तो सोचा फिर पढूंगी। हाथ के काम पूरे कर लूँ पर क्या हुआ मालूम नहीं maid खुद कब दरवाज़ा बन्द कर के चली गई बाहर के कमरे के सारे बिजली के बटन उसी ने बन्द किए मैं किसी कोमलांगी की कल्पना और उसके गदरू बच्चे की कल्पना में बंधी रह गई...
  • author
    manoj
    19 మార్చి 2017
    कला, पढ़े लिखो की भाषा मे "Art" ! एक खोई खोई सी आवाज, दबी दबी सी चीख, कोई, बुढ़ापे की आह सी. कहानी नही दर्द है, पता नही क्या. पढ़ के खो जाए उसे ही कहानी कहते है, आप की कहानी बेहोश करने वाली है. बधाई के पात्र है आप
  • author
    Shaily Shaily
    06 జూన్ 2018
    बहुत अच्छी रचना बहुत से घुमाव लिए हुए किन्तु रचनाकार का अध्ययन रचना में परिलक्षित हो रहा है
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    अंजुलिका चावला
    19 జులై 2019
    29 मिनट का समय लिखा दिखा तो सोचा फिर पढूंगी। हाथ के काम पूरे कर लूँ पर क्या हुआ मालूम नहीं maid खुद कब दरवाज़ा बन्द कर के चली गई बाहर के कमरे के सारे बिजली के बटन उसी ने बन्द किए मैं किसी कोमलांगी की कल्पना और उसके गदरू बच्चे की कल्पना में बंधी रह गई...
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    manoj
    19 మార్చి 2017
    कला, पढ़े लिखो की भाषा मे "Art" ! एक खोई खोई सी आवाज, दबी दबी सी चीख, कोई, बुढ़ापे की आह सी. कहानी नही दर्द है, पता नही क्या. पढ़ के खो जाए उसे ही कहानी कहते है, आप की कहानी बेहोश करने वाली है. बधाई के पात्र है आप
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    Shaily Shaily
    06 జూన్ 2018
    बहुत अच्छी रचना बहुत से घुमाव लिए हुए किन्तु रचनाकार का अध्ययन रचना में परिलक्षित हो रहा है