pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

मृग मरीचिका

5
17

मैंने, ढूंढा उसे भरे बाजारों में सजावटी उपहारो में कई कई दुकानों में और महकते पकवानों में कपड़ों और गहनों में पर वह ओझल थी ओझल ही रही नैनों में खुशी ,........ खुशी कब कहां बिकती है ढूंढने ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
उपासना दुबे

मैं जो हूँ वो किसी का अधूरा छूटा हुआ ख़्वाब हूँ, जिसे मुकम्मल होना अभी बाकी है... मैं राही हूँ उस रास्ते का ,जिसकी मंजिल पीछे छूट गयी, लेकिन सफर अभी भी जारी है....

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sunita Roy
    09 अक्टूबर 2023
    कुछ अनुभूतियाँ जीवन की आपा धापी में अछूती रह जाती है । वे समझ तो आती है पर परिभाषित नहीं हो पाती ।हालांकि इनके आकर्षण की कमी तो बेहद सालती है । खुशियाँ .. कहाँ किसे के हिस्से टिक पाती है ... !! बहुत अनुभूतिपूर्वक लिखा है आपने श्रीमति जितेंद्र जी ।
  • author
    AnjaNa GoMasta
    09 अक्टूबर 2023
    बहुत खूब 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻 खुशियां मृग-मरीचिका सी हम दौड़ते-ढूँढ़ते रह गए जीवन ये मृगतृष्णा सी आंसुओं को पीते रह गए
  • author
    ❣️Ankita❣️
    09 अक्टूबर 2023
    शत प्रतिशत सत्य परंतु ये कटु सत्य भी आपके शब्द पाकर खूबसूरत हो गया है
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sunita Roy
    09 अक्टूबर 2023
    कुछ अनुभूतियाँ जीवन की आपा धापी में अछूती रह जाती है । वे समझ तो आती है पर परिभाषित नहीं हो पाती ।हालांकि इनके आकर्षण की कमी तो बेहद सालती है । खुशियाँ .. कहाँ किसे के हिस्से टिक पाती है ... !! बहुत अनुभूतिपूर्वक लिखा है आपने श्रीमति जितेंद्र जी ।
  • author
    AnjaNa GoMasta
    09 अक्टूबर 2023
    बहुत खूब 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻 खुशियां मृग-मरीचिका सी हम दौड़ते-ढूँढ़ते रह गए जीवन ये मृगतृष्णा सी आंसुओं को पीते रह गए
  • author
    ❣️Ankita❣️
    09 अक्टूबर 2023
    शत प्रतिशत सत्य परंतु ये कटु सत्य भी आपके शब्द पाकर खूबसूरत हो गया है