मेरे शहर का वाक्या 'मोहन', कुछ इस तरह हो गया है।
हर्षोल्लास बनावटी है अब, दिलों में ज़हर भर गया है।
पहले प्रीत भरी चौपालें थीं, अब मोबाईल में सिमटे लोग।
इंसानियत कहीं न दिखती, बन्दा स्वार्थी इतना हो गया है।
इसी विषय पर हमने भी एक लेख लिखा है पढ़कर समुचित समीक्षा अवश्य ही करें जी प्यारी साहिबा।
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