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मिलन उस छोर तक

4.1
6136

शाम की सुर्ख हवा और मौसम में कुछ नमी दोनों के दिलों को जार-जार कर रही थी आखिर !हो भी क्यों ना?प्रेम दोनों तरफ से बुलन्दियों पर जो था!माहे फरवरी और मधुमास की यह यौवनावस्था एक दूसरे को बस यही कह कह रहे ...

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लेखक के बारे में
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शालिनी साहू

शब्दों का मूक हो जाना पीड़ा की अन्तिम परिणति है। घाव गहरे से नासूर बने जख़्म की अन्तिम परिणति है पूर्ण कहाँ होता है हर स्वप्न रसातल की शरण में वेदना के सिन्धु में गोते लगाना अधूरे स्वप्न की अन्तिम परिणति है । ढुलक जाये जब हजारों मोती पलकों की कोरों से स्वयं को समेट लेना तब जीवन की अन्तिम परिणति है। पगडण्डियों पर चलना कहाँ आसान जब पथ का सही ज्ञान न हो अनुमान के सहारे चलते जाना तब गन्तव्य की अन्तिम परिणति है । बिखरने में अस्तित्व है सिमटने का सामने था वह स्वप्न जो अब पलकों की कोरों में ही रह गया स्वयं को इस घड़ी से उबार लेना ही जीने की अन्तिम परिणति है। शालिनी साहू ऊँचाहार, रायबरेली (उ0प्र0)

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Alka Sanghi
    11 मार्च 2018
    kahani filmy si hai
  • author
    05 अप्रैल 2018
    अच्छी कहानी, एक बार मेरी कहानी तेजाब के छींटे जरूर पढ़ें
  • author
    janak dewangan
    03 अगस्त 2018
    सच्चा प्रेम अपनी मंजिल पा कर रहता है
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    Alka Sanghi
    11 मार्च 2018
    kahani filmy si hai
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    05 अप्रैल 2018
    अच्छी कहानी, एक बार मेरी कहानी तेजाब के छींटे जरूर पढ़ें
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    janak dewangan
    03 अगस्त 2018
    सच्चा प्रेम अपनी मंजिल पा कर रहता है