20 october के सुबह मुझे धनबाद जाना था । तो हमेशा आदत की तरह मैं एक घंटे पहले ही स्टेशन पर ट्रैन का इंतज़ार कर रहा था । प्लेटफार्म पर अकेले बोर हो रहा था , तो मोबाइल निकाल कर सारे नोटिफिकेशन चेक कर ...
संपर्क - 9472596357
कहानी संग्रह - पटना वाला प्यार (flydreams publication)
उपन्यास -
1. अवतार - महारक्षकों का आगमन (flywings, unit of flydreams publication)
2. दुर्गापुर जंक्शन (blue emerald publication)
SWA MEMBER
सारांश
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कहानी संग्रह - पटना वाला प्यार (flydreams publication)
उपन्यास -
1. अवतार - महारक्षकों का आगमन (flywings, unit of flydreams publication)
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अगर उस व्यक्ति को उसकी इतनी ही चिंता थी तो उसे उसकी शादी किसी और से करानी चाहिए थी।यह प्यार नहीं सहानुभूति थी। और दूसरी बात आबादी बढ़ाने के लिए २ मशीनें चाहिए।जो गलत है तो ग़लत है इसमें नजर बेवकूफ बनाने का प्रयास कर रही है।
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
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मैं नहीं मानता ऐसी बातों को जो मेरे और मेरे दोस्तों के साथ हुआ था 15 अगस्त के दिन । जिसे सोच कर आज भी हमे अपने आप पर ही धिक्कार महशूस होता है की हमने क्यों नहीं अपनी कदम आगे बढ़ाई थी। हमारा देश अंदर से खोखला हो चूका है जिसे राजनीतीवश किसी को दिखाई नहीं देता । लेकिन हमने देखा था अपनी आँखों से अब 15 अगस्त और स्वतंत्रता का मायने मेरे अंदर है ही नहीं ।
ठीक होते है साप्रदायिक सोच वाले ही अब मैं भी अपने देश और धर्म के लिए जीता हूँ । लेकिन गंगा जमुना की कोई लाख मिशाल दे दे लेकिन मेरे सामने अब सब व्यर्थ है और मैं आशा भी करता हूँ की मेरे आँखों के सामने कोई गंगा जमुनी की बाते न करे ।
वैसे आपकी कहानी आपकी बहुत सही है। लेकिन मेरे सामने भी शायद डेढ़ साल पहले सही रहता लेकिन अब ब्यर्थ लगता है ऐसी एकता की बाते।
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अगर उस व्यक्ति को उसकी इतनी ही चिंता थी तो उसे उसकी शादी किसी और से करानी चाहिए थी।यह प्यार नहीं सहानुभूति थी। और दूसरी बात आबादी बढ़ाने के लिए २ मशीनें चाहिए।जो गलत है तो ग़लत है इसमें नजर बेवकूफ बनाने का प्रयास कर रही है।
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मैं नहीं मानता ऐसी बातों को जो मेरे और मेरे दोस्तों के साथ हुआ था 15 अगस्त के दिन । जिसे सोच कर आज भी हमे अपने आप पर ही धिक्कार महशूस होता है की हमने क्यों नहीं अपनी कदम आगे बढ़ाई थी। हमारा देश अंदर से खोखला हो चूका है जिसे राजनीतीवश किसी को दिखाई नहीं देता । लेकिन हमने देखा था अपनी आँखों से अब 15 अगस्त और स्वतंत्रता का मायने मेरे अंदर है ही नहीं ।
ठीक होते है साप्रदायिक सोच वाले ही अब मैं भी अपने देश और धर्म के लिए जीता हूँ । लेकिन गंगा जमुना की कोई लाख मिशाल दे दे लेकिन मेरे सामने अब सब व्यर्थ है और मैं आशा भी करता हूँ की मेरे आँखों के सामने कोई गंगा जमुनी की बाते न करे ।
वैसे आपकी कहानी आपकी बहुत सही है। लेकिन मेरे सामने भी शायद डेढ़ साल पहले सही रहता लेकिन अब ब्यर्थ लगता है ऐसी एकता की बाते।
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