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मेरा कुसूर

4.1
1011

ऐ समाज के ठेकेदारों! नहीं पहन रखे थे मैंने उत्तेजक और भड़काऊ कपड़े। नहीं घूम रही थी मैं देर रात अपने किसी ब्वाय फ्रेण्ड के साथ या नहीं बैठी थी मैं पार्क के किसी सूने कोने में। मैं तो चुपचाप अकेली ...

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लेखक के बारे में

पूर्व केंद्र सरकार प्रथम श्रेणी अधिकारी/संपादक/कवि/गायक/अभिनेता/कार्टूनिस्ट/कलाकर्मीं. "खरी-खरी" जन चेतना कार्टून पोस्टर प्रदर्शनी के माध्यम से देश भर में विभिन्न कुरीतियों के खिलाफ, मैत्री भाईचारे और सांप्रदायिक सद्भाव हेतु प्रयत्नशील.. मो. 9599600313, 8447673015 ईमेल: [email protected]

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    रवि कुमार
    19 अक्टूबर 2015
    खुबसूरत रचना सृजन
  • author
    Chandra Srivastava
    20 अक्टूबर 2015
    भैया मैं आपकी कविता को पढ़ा ,आपकी रचना बहुत ही मार्मिक और संवेन्दनशील है ,आपकी यह रचना दिल को छू गई 
  • author
    18 अक्टूबर 2015
    Na jane kab aise log samjhenge komal man ke darpan ko samjhna. Bahut marmik
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    रवि कुमार
    19 अक्टूबर 2015
    खुबसूरत रचना सृजन
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    Chandra Srivastava
    20 अक्टूबर 2015
    भैया मैं आपकी कविता को पढ़ा ,आपकी रचना बहुत ही मार्मिक और संवेन्दनशील है ,आपकी यह रचना दिल को छू गई 
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    18 अक्टूबर 2015
    Na jane kab aise log samjhenge komal man ke darpan ko samjhna. Bahut marmik