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मेरा गाँव बदल गया है

4.4
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लगभग तीन-चार साल बाद अपने गाँव, अपने जन्म-स्थान जाने का अवसर प्राप्त हुआ। निर्णय यह हुआ कि इस बार हम साइकिल से चलेंगे। मेरा वजन अब पहले जैसा नहीं रहा। 55 किलो की सीमा पार करके 75-80 किलो का भारी-भरकम ...

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लेखक के बारे में

लेखन जिसके लिए संजीवनी है, पढ़ना असंख्य मनीषियों की संगति, किताबें मंदिर और लेखक उस मंदिर के देव-देवी। कठकरेज’ (कहानी संग्रह) तथा मैथिली भोजपुरी अकादमी, दिल्ली से ‘जिनगी रोटी ना हऽ’ (कविता संग्रह), 'सम्भवामि युगे युगे' (लेख-संग्रह) व 'ऑनलाइन ज़िन्दगी' (कहानी संग्रह) प्रकाशित हो चुकी है। साझा काव्य संग्रह ‘पंच पल्लव’ और 'पंच पर्णिका' का संपादन भी किया है। वर्ण-पिरामिड का साझा-संग्रह ‘अथ से इति-वर्ण स्तंभ’ तथा ‘शत हाइकुकार’ हाइकु साझा संग्रह में आ चुके हैं। साहित्यकार श्री रक्षित दवे द्वारा अनुदित इनकी अट्ठाइस कविताओं को ‘वारंवार खोजूं छुं’ नाम से ‘प्रतिलिपि डाॅट काॅम’ पर ई-बुक भी है। आकाशवाणी और कई टी.वी. चैनलों से निरंतर काव्य-कथा पाठ प्रसारित होते रहने के साथ ही ये अपने गृहनगर में साहित्यिक संस्था ‘संवाद’ का संयोजन करते रहे हैं। इन्होंने हिंदी टेली फिल्म ‘औलाद, लघु फिल्म ‘लास्ट ईयर’ और भोजपुरी फिल्म ‘कब आई डोलिया कहार’ के लिए पटकथा-संवाद और गीत लिखा है। ये अबतक लगभग तीन दर्जन नाटकों-लघुनाटकों का लेखन और निर्देशन कर चुके हैं। वर्तमान में कई पत्रिकाओं के संपादक मंडल से जुड़े हुए हैं। साल 2002 से हिंदी शिक्षण और पाठ्यक्रम निर्माण में संलग्न हैं तथा वर्तमान में दिल्ली परिक्षेत्र में शिक्षण-कार्य करते हुए स्वतंत्र लेखन करते हैं। ये विश्व-पटल पर छात्रों को आॅनलाइन हिंदी पढ़ाते हैं। राजापुरी, उत्तम-नगर, नई दिल्ली

समीक्षा
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  • author
    गौरव यादव
    09 मई 2018
    मैंने वो सब इसमे पाया जो मैं जीना चाहता था😢 अब मजबूरी कहो या पिताजी को हमारी फिक्र बचपन से ही अपने गांव से कोसो दूर रहा हु मैं.. हालांकि उनके इरादे तो हमे सवारने के थे लेकिन क्या उन्हें बच्चों का बचपन उनके गांव उनके जन्मस्थान में नही गुजरना चाहिए...😢 बहरहाल बेहद सुंदर रचना है.. आपको अपने गांव के करीब तो जरूर ले जायेगी ...
  • author
    suraj kumar
    03 अप्रैल 2017
    यात्रा वृत्तांत का अंत बड़ा अटपटा सा लगा.. क्या गाँव छोड़ने का निर्णय कुछ अटपटे पहलु ने निर्धारित किया... बाकी ग्रामीण रस् ने पूरा सराबोर किया..👌
  • author
    nepal Rathore
    26 अप्रैल 2018
    बोहोत कम लेखक होते हैं जो पढ़ने वालो को साथ में लेकर चल सकते हैं। बोहोत खुब ,,, ऐसे लगा जैसे हम आपके पिछली चिट पर बैठे हैं।।।।
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    गौरव यादव
    09 मई 2018
    मैंने वो सब इसमे पाया जो मैं जीना चाहता था😢 अब मजबूरी कहो या पिताजी को हमारी फिक्र बचपन से ही अपने गांव से कोसो दूर रहा हु मैं.. हालांकि उनके इरादे तो हमे सवारने के थे लेकिन क्या उन्हें बच्चों का बचपन उनके गांव उनके जन्मस्थान में नही गुजरना चाहिए...😢 बहरहाल बेहद सुंदर रचना है.. आपको अपने गांव के करीब तो जरूर ले जायेगी ...
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    suraj kumar
    03 अप्रैल 2017
    यात्रा वृत्तांत का अंत बड़ा अटपटा सा लगा.. क्या गाँव छोड़ने का निर्णय कुछ अटपटे पहलु ने निर्धारित किया... बाकी ग्रामीण रस् ने पूरा सराबोर किया..👌
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    nepal Rathore
    26 अप्रैल 2018
    बोहोत कम लेखक होते हैं जो पढ़ने वालो को साथ में लेकर चल सकते हैं। बोहोत खुब ,,, ऐसे लगा जैसे हम आपके पिछली चिट पर बैठे हैं।।।।