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मेरा बचपन मेरा मोहल्ला

4.5
1367

इस भागदौड़ के चक्कर में कितना कुछ पीछे छूटा है, इन गलियों की ख़ामोशी कहती “बदलते वक्त ने मोहल्ला लूटा है..” अब कहाँ वो महफ़िल लगती है, जहाँ बूढ़ी अम्मा हँसती थी अब कहाँ वो बिटिया अपनी रही जो कहानी सुनने ...

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लेखक के बारे में

वो लिखती हूँ जो जिया है । उनके लिए लिखती हूँ जो जीती हैं पर लिख नहीं पाती । और लिखती हूँ शायद इसलिए जी रही हूँ । उम्मीद है जब तक जिऊँ , लिखती रहूँ :)

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    26 मार्च 2019
    बहुत सुन्दर लिखा है । अगर पंक्तियों, छन्दों को अलग-अलग करके लिखतीं तो और भी बेहतरीन प्रस्तुति होती । कृपया पुनः संपादन (edit) करें, रचना और अच्छी लगेगी । 🙏🙏🙏
  • author
    vishal bhatia
    10 जुलाई 2023
    bahot behtareen । lagta hain jaise mere hi jazbaat hon ।
  • author
    Padmaja Patnaik
    29 जुलाई 2022
    really good i like it
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    26 मार्च 2019
    बहुत सुन्दर लिखा है । अगर पंक्तियों, छन्दों को अलग-अलग करके लिखतीं तो और भी बेहतरीन प्रस्तुति होती । कृपया पुनः संपादन (edit) करें, रचना और अच्छी लगेगी । 🙏🙏🙏
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    vishal bhatia
    10 जुलाई 2023
    bahot behtareen । lagta hain jaise mere hi jazbaat hon ।
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    Padmaja Patnaik
    29 जुलाई 2022
    really good i like it