इस भागदौड़ के चक्कर में कितना कुछ पीछे छूटा है,
इन गलियों की ख़ामोशी कहती “बदलते वक्त ने मोहल्ला लूटा है..”
अब कहाँ वो महफ़िल लगती है, जहाँ बूढ़ी अम्मा हँसती थी
अब कहाँ वो बिटिया अपनी रही जो कहानी सुनने ...
बहुत सुन्दर लिखा है । अगर पंक्तियों, छन्दों को अलग-अलग करके लिखतीं तो और भी बेहतरीन प्रस्तुति होती । कृपया पुनः संपादन (edit) करें, रचना और अच्छी लगेगी । 🙏🙏🙏
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