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मारेसि मोहिं कुठाँउ

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जब कैकेयी ने दशरथ से यह वर माँगा कि राम को वनवास दे दो तब दशरथ तिलमिला उठे, कहने लगे कि चाहे मेरा सिर माँग ले अभी दे दूँगा, किन्तु मुझे राम के विरह से मत मार। गोसाईं तुलसीदासजी के भाव भरे शब्दों में ...

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लेखक के बारे में

जन्म: 7 जुलाई 1883, पुरानी बस्ती, जयपुर, राजस्थान भाषा : हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी विधाएँ : कहानी, निबंध, व्यंग्य, कविता, आलोचना, संस्मरण प्रमुख कृतियाँ : गुलेरी रचनावली (दो खंडों में) संपादन : समालोचक, नागरी प्रचारिणी पत्रिका (संपादक मंडल के सदस्य) निधन: 12 सितंबर 1922, बनारस चन्द्रधर गुलेरी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, उन्होने हिन्दी, संस्कृत, पाली, प्राकृत एवं इंग्लिश भाषाओं में साहित्य का सृजन किया है। उन्होने साथ ही खगोल विज्ञान, ज्योतिष, धर्म, भाषा विज्ञान, इतिहास, शोध, आलोचना आदि अनेक दिशाओं में कार्य किया. ह कुछ समय तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राच्य विभाग में प्राचार्य भी रहे।

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    अमरेन्द्र
    30 मार्च 2017
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