हां लकीरों का ना सही साथ तुझे कुछ कर दिखाने को ये बाजुएं तो मिली एक राह ना मिली फूलों से भरी पे की तनिक छांव तो मिली कालचक्र के इस पहिये में कहीं तो सुबह आएगी गिरते ही सही,भटकते ही सही मंजिल मिल ...
बहुत सुंदर रचना 👏👏👏
कोशिश तो हर रोज करती हूं
मंजिल को पाने की
असफल भी हुई हूं
हौसले मजबूत है
इरादे भी दृढ़ हैं
हर बार असफल ही हो जाऊं
ये जरूरी तो नहीं........
रिपोर्ट की समस्या
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