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मंगलसूत्र

4.4
33651

हॉस्पिटल के कमरे के बाहर वो बैचेनी से चक्कर लगा रही थी।वो समझ नहीं पा रही थी कि वो ईश्वर से अपने पति के जीने की प्रार्थना करे या मौत की।यदि वो बच जाता है तो...अनायास उसका हाथ अपने गले में पहने ...

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लेखक के बारे में
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नीता राठौर

नीता राठौर .... केवल फॉलो न करें बल्कि अपनी प्रतिक्रियाएं भी दें। आप की अमूल्य प्रतिक्रियाएं, आलोचना, समालोचना, सराहना, प्रोत्साहन ही मुझे नव सृजन के लिए प्रेरित करता है।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ujjwal Tripathi
    02 డిసెంబరు 2018
    हर शब्द अगले शब्द को पढ़ने के लिए खींचता है, खूबसूरत...
  • author
    08 జనవరి 2019
    आदरणीया, कहानी का प्लॉट बहुत अच्छा है। आपने घटनाओं का वर्णन एक द्रुत गति से चलती ट्रेन की तरह किया है। प्रतिनिधि कहानियाँ ऐसी नहीं होती। कहानियाँ घटनाओं का रोपोर्ट नहीं होती हैं। उसमें सन्वेगों को संवारना होता है। संवेदनाओं को गुम्फित किया जाना होता है। और अन्त को एक ऐसे मोड़ पर छोड़ना होता है कि पाठक कुछ सोचने पर विवश हो जाय। आप जैनेंद्र कुमार या निर्मल वर्मा को पढिए। काफी कुछ सीखने को मिलेगा। मेरे सुझाओं को अन्यथा नहीं लगीं। सादर! ब्रजेन्दनाथ
  • author
    Geeta Ved
    03 ఫిబ్రవరి 2019
    nice story
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    Ujjwal Tripathi
    02 డిసెంబరు 2018
    हर शब्द अगले शब्द को पढ़ने के लिए खींचता है, खूबसूरत...
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    08 జనవరి 2019
    आदरणीया, कहानी का प्लॉट बहुत अच्छा है। आपने घटनाओं का वर्णन एक द्रुत गति से चलती ट्रेन की तरह किया है। प्रतिनिधि कहानियाँ ऐसी नहीं होती। कहानियाँ घटनाओं का रोपोर्ट नहीं होती हैं। उसमें सन्वेगों को संवारना होता है। संवेदनाओं को गुम्फित किया जाना होता है। और अन्त को एक ऐसे मोड़ पर छोड़ना होता है कि पाठक कुछ सोचने पर विवश हो जाय। आप जैनेंद्र कुमार या निर्मल वर्मा को पढिए। काफी कुछ सीखने को मिलेगा। मेरे सुझाओं को अन्यथा नहीं लगीं। सादर! ब्रजेन्दनाथ
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    Geeta Ved
    03 ఫిబ్రవరి 2019
    nice story