हॉस्पिटल के कमरे के बाहर वो बैचेनी से चक्कर लगा रही थी।वो समझ नहीं पा रही थी कि वो ईश्वर से अपने पति के जीने की प्रार्थना करे या मौत की।यदि वो बच जाता है तो...अनायास उसका हाथ अपने गले में पहने ...
नीता राठौर ....
केवल फॉलो न करें बल्कि अपनी प्रतिक्रियाएं भी दें।
आप की अमूल्य प्रतिक्रियाएं, आलोचना, समालोचना, सराहना, प्रोत्साहन ही मुझे नव सृजन के लिए प्रेरित करता है।
सारांश
नीता राठौर ....
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आप की अमूल्य प्रतिक्रियाएं, आलोचना, समालोचना, सराहना, प्रोत्साहन ही मुझे नव सृजन के लिए प्रेरित करता है।
आदरणीया, कहानी का प्लॉट बहुत अच्छा है। आपने घटनाओं का वर्णन एक द्रुत गति से चलती ट्रेन की तरह किया है। प्रतिनिधि कहानियाँ ऐसी नहीं होती। कहानियाँ घटनाओं का रोपोर्ट नहीं होती हैं। उसमें सन्वेगों को संवारना होता है। संवेदनाओं को गुम्फित किया जाना होता है। और अन्त को एक ऐसे मोड़ पर छोड़ना होता है कि पाठक कुछ सोचने पर विवश हो जाय। आप जैनेंद्र कुमार या निर्मल वर्मा को पढिए। काफी कुछ सीखने को मिलेगा।
मेरे सुझाओं को अन्यथा नहीं लगीं।
सादर!
ब्रजेन्दनाथ
रिपोर्ट की समस्या
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आदरणीया, कहानी का प्लॉट बहुत अच्छा है। आपने घटनाओं का वर्णन एक द्रुत गति से चलती ट्रेन की तरह किया है। प्रतिनिधि कहानियाँ ऐसी नहीं होती। कहानियाँ घटनाओं का रोपोर्ट नहीं होती हैं। उसमें सन्वेगों को संवारना होता है। संवेदनाओं को गुम्फित किया जाना होता है। और अन्त को एक ऐसे मोड़ पर छोड़ना होता है कि पाठक कुछ सोचने पर विवश हो जाय। आप जैनेंद्र कुमार या निर्मल वर्मा को पढिए। काफी कुछ सीखने को मिलेगा।
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