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हिन्दी

मंदिर

4.6
11124

मातृ-प्रेम, तुझे धान्य है ! संसार में और जो कुछ है, मिथ्या है, निस्सार है। मातृ-प्रेम ही सत्य है, अक्षय है, अनश्वर है। तीन दिन से सुखिया के मुँह में न अन्न का एक दाना गया था, न पानी की एक बूँद। सामने ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उपनाम : मुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, उपन्यास सम्राट जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) देहावसान : 8 अक्टूबर 1936 भाषा : हिंदी, उर्दू विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य   मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के महानतम साहित्यकारों में से एक हैं, आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद ने स्वयं तो अनेकानेक कालजयी कहानियों एवं उपन्यासों की रचना की ही, साथ ही उन्होने हिन्दी साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को भी प्रभावित किया और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानियों की परंपरा कायम की|  अपने जीवनकाल में प्रेमचंद ने 250 से अधिक कहानियों, 15 से अधिक उपन्यासों एवं अनेक लेख, नाटक एवं अनुवादों की रचना की, उनकी अनेक रचनाओं का भारत की एवं अन्य राष्ट्रों की विभिन्न भाषाओं में अन्यवाद भी हुआ है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
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    अतीत सिंह "रुपक"
    22 जनवरी 2019
    हमेशा की तरह मुंशीजी की रचनाएं दशकों बाद भी हमारे समाज को प्रतिबिंबित करता है। वैसे सुखिया को जियावन को लेकर आसपास के वैध के पास जाना चाहिए था न कि मंदिर जाने की ज़िद में समय नष्ट करना। और एक बात देखिए न नाम में ही कितनी अतिसंयोक्ति है। जिसे एक के बाद एक दुख सहा उसका नाम सुखिया और अल्पाआयु का नाम जियावन!!!!
  • author
    Vivek Kumar Rajput
    03 दिसम्बर 2018
    पुराने समय में ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने हिन्दू समाज को बहुत विखंडित किया और कुछ वर्ग के लोगों की उनके अधिकारों से वंचित रखा। आज भी कुछ जगह ऐसा देखने को मिलता है जो बहुत निंदनीय है। मुंशी प्रेमचन्द जी का बहुत बहुत आभार। ऐसी कुरीतियों को उजागर करने के लिए
  • author
    rajender choudhary
    30 दिसम्बर 2018
    ऐसी कहानियां मुझे सच्ची नहीं लगती क्योंकि पंजाबी होने के नाते मेने ऐसा छुआछूत नहीं देखा हमारे यहां खेती के जायदातर कामगार मजबी (चमार) विरादरी से हि आते हैं और काम के दिनों में चाहे खेत में या मकान की उसारी हो या बढैही हो अक्सर खाना-पीना काम करवाने वाले ही देते थे कभी छुआछूत नहीं देखा ना ही सुना मगर कई कहानीकारों की कहानियों में पढा जरूर है पर वेमन से मुंशी प्रेमचंद अच्छे कहानीकार थे पर कहानी सच्ची नहीं होती ऐसी कहानियां समाज में फूट डालती है।।
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    अतीत सिंह "रुपक"
    22 जनवरी 2019
    हमेशा की तरह मुंशीजी की रचनाएं दशकों बाद भी हमारे समाज को प्रतिबिंबित करता है। वैसे सुखिया को जियावन को लेकर आसपास के वैध के पास जाना चाहिए था न कि मंदिर जाने की ज़िद में समय नष्ट करना। और एक बात देखिए न नाम में ही कितनी अतिसंयोक्ति है। जिसे एक के बाद एक दुख सहा उसका नाम सुखिया और अल्पाआयु का नाम जियावन!!!!
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    Vivek Kumar Rajput
    03 दिसम्बर 2018
    पुराने समय में ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने हिन्दू समाज को बहुत विखंडित किया और कुछ वर्ग के लोगों की उनके अधिकारों से वंचित रखा। आज भी कुछ जगह ऐसा देखने को मिलता है जो बहुत निंदनीय है। मुंशी प्रेमचन्द जी का बहुत बहुत आभार। ऐसी कुरीतियों को उजागर करने के लिए
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    rajender choudhary
    30 दिसम्बर 2018
    ऐसी कहानियां मुझे सच्ची नहीं लगती क्योंकि पंजाबी होने के नाते मेने ऐसा छुआछूत नहीं देखा हमारे यहां खेती के जायदातर कामगार मजबी (चमार) विरादरी से हि आते हैं और काम के दिनों में चाहे खेत में या मकान की उसारी हो या बढैही हो अक्सर खाना-पीना काम करवाने वाले ही देते थे कभी छुआछूत नहीं देखा ना ही सुना मगर कई कहानीकारों की कहानियों में पढा जरूर है पर वेमन से मुंशी प्रेमचंद अच्छे कहानीकार थे पर कहानी सच्ची नहीं होती ऐसी कहानियां समाज में फूट डालती है।।