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मानव का वीभत्स कृत!

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मानव का वीभत्स कृत! कभी-कभी परिन्दा  रूह का भी फड़फड़ाने लगता है, जब जिन्दा दिलों को तोड़कर इंसान   उनके याद में ईंट-पत्थरों से मंदिर बनाने लगता है। जीवित प्रेम संदेश को ठुकराया जाता है, मरने पर ...

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लेखक के बारे में

दर्द आँसू और अहसास जीवन के हैं सब खास, क्या लिखूँ मैं आज। गरीबों का आस लिखूँ अमीरों का विलास लिखूँ पाखण्डीयों का जाल लिखूँ लिखूँ भ्रष्ट नेताओं का दास्तान क्या लिखूँ मैं आज। नारी की पीड़ा लिखूँ पियत पुरूष मदिरा लिखूँ बाल मजदूरों की जखीरा लिखूँ लिखूँ घुमत शिक्षित युवा बेरोजगार क्या लिखूँ मैं आज। त्रिवेणी कुशवाहा "त्रिवेणी" डिप्लोमा इन सिविल इंजीनियरिंग, इन 2003 - सेन्ट्रल इण्डिया इन्स्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एण्ड स्टडीज, मास्टर ट्रेनर कोर्स,इन 2004 - होम्सग्लेन, आस्ट्रेलिया, स्किल ट्रेनर एवम् मोटीवेटर बहुराष्ट्रीय निर्माण कम्पनी में भारत एवम् जी सी सी कन्ट्रीज, सामाचार पत्रों में प्रकाशित कविताएँ ।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Krishna Shukla
    25 दिसम्बर 2019
    बहुत ही अद्भुत अभिव्यक्ति. जीते जी तो प्यार की हर बात महसूस भी नहीं करते और बाद मन्दिर बनाकर प्यार का दिखवा करना. मन पंछी विकल हो उड़ना चाहता है. बहुत ही खूबसूरत अहसास पिरो कर रचना की है. बहुत बहुत बधाई
  • author
    R.K shrivastava
    25 दिसम्बर 2019
    बिल्कुल ! सुंदर तथा यथार्थ आधारित रचना ! मानव स्वभाव का सुंदर चित्रण !!👌👌👌👌👌👌👌👌
  • author
    Rajendra Mishra "राजन"
    25 दिसम्बर 2019
    बहुत ही खूबसूरत और सुन्दर पंक्तियां हैं आपकी रचना में
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    Krishna Shukla
    25 दिसम्बर 2019
    बहुत ही अद्भुत अभिव्यक्ति. जीते जी तो प्यार की हर बात महसूस भी नहीं करते और बाद मन्दिर बनाकर प्यार का दिखवा करना. मन पंछी विकल हो उड़ना चाहता है. बहुत ही खूबसूरत अहसास पिरो कर रचना की है. बहुत बहुत बधाई
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    R.K shrivastava
    25 दिसम्बर 2019
    बिल्कुल ! सुंदर तथा यथार्थ आधारित रचना ! मानव स्वभाव का सुंदर चित्रण !!👌👌👌👌👌👌👌👌
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    Rajendra Mishra "राजन"
    25 दिसम्बर 2019
    बहुत ही खूबसूरत और सुन्दर पंक्तियां हैं आपकी रचना में