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मैनेजर साहिबा

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4.5

हर रोज़ की तरह आज भी बडबडाते हुऐ पंकज घर से बाहर आ गया और हर रोज़ की तरह आज भी पूजा घर के भीतर बस यही सोचती रह गयी कि तन-मन से स्वंय को अर्पण कर के भी उसे क्या मिला पंकज से? कटाक्ष "मैनेजर साहिबा", ...