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मन पगला

4.2
897

अमावस की अंधेरी में भी नहा लेता है उजली चांदनी में। तपती, झुलसती धूप में जलते खुले आसमान के नीचे भी पा लेता है घने तरुवर की शीतल छाँव।। मन पगला कुहासों के नम ठिठुरते अंधेरों में ढूंढ लेता ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    अनिल कुमार सिंह
    21 ઓકટોબર 2015
    मैं अब मैं रह गया हूँ ,बहुत सुंदर विनीता जी
  • author
    सुमन रौशन
    19 ઓકટોબર 2015
    अच्छी कविता। बधाई !!
  • author
    bisheshwar kumar
    15 એપ્રિલ 2020
    सुन्दर अभव्यक्ति
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    अनिल कुमार सिंह
    21 ઓકટોબર 2015
    मैं अब मैं रह गया हूँ ,बहुत सुंदर विनीता जी
  • author
    सुमन रौशन
    19 ઓકટોબર 2015
    अच्छी कविता। बधाई !!
  • author
    bisheshwar kumar
    15 એપ્રિલ 2020
    सुन्दर अभव्यक्ति