मैंने अखबार में इश्तहार छपवा दिया सब आने जाने वाली जगह पता किया जगह-जगह तलाश किया आखिर अंत में हताश हुआ मेरा गुमशुदा मन आखिर कहीं ना मिला!! फिर, पता चला... एक आभूषण की दुकान पर , बैठा था ...
वाह! खूबसूरत इश्तहार....अद्भुत परिकल्पना की है आपने, मन की चंचल गति की सुंदर और सटीक विवेचना की गई आपकी रचना में। काश! ये मन आपकी रचना के कहे अनुसार प्रभु की ओर उन्मुख हो अपनी सांसारिक भूमिका का निर्वहन करे। बेहतरीन और अनुकरणीय संदेश देती श्रेष्ठ रचना।
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वाह! खूबसूरत इश्तहार....अद्भुत परिकल्पना की है आपने, मन की चंचल गति की सुंदर और सटीक विवेचना की गई आपकी रचना में। काश! ये मन आपकी रचना के कहे अनुसार प्रभु की ओर उन्मुख हो अपनी सांसारिक भूमिका का निर्वहन करे। बेहतरीन और अनुकरणीय संदेश देती श्रेष्ठ रचना।
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