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मज़े जहाँ के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं

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मज़े जहाँ के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं सिवाय ख़ून-ए-जिगर, सो जिगर में ख़ाक नहीं मगर ग़ुबार हुए पर हव उड़ा ले जाये वगर्ना ताब-ओ-तवाँ बाल-ओ-पर में ख़ाक नहीं ये किस बहीश्तशमाइल की आमद-आमद है के ग़ैर ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : मिर्ज़ा असदउल्ला बेग़ ख़ान ग़ालिब जन्म : 27 दिसंबर 1796, आगरा (उत्तर प्रदेश) भाषा : उर्दू, फ़ारसी विधाएँ : गद्य, पद्य निधन - 15 फरवरी 1869, दिल्ली

समीक्षा
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  • author
    Arun Kumar
    05 மார்ச் 2021
    Lajabab 🙏🙏
  • author
    c___o_m__r_a_d_e_21
    03 பிப்ரவரி 2021
    💫
  • author
    Adv.Rushikesh Kalwaghe
    11 மே 2020
    amazing one 👍
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    Arun Kumar
    05 மார்ச் 2021
    Lajabab 🙏🙏
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    03 பிப்ரவரி 2021
    💫
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    Adv.Rushikesh Kalwaghe
    11 மே 2020
    amazing one 👍