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मैंने जीना सीख लिया

4.5
15058

मैंने जीना सीख लिया "माँ! उठो, माँ.. पानी पी लो ना माँ,"  मंझली बेटी रेखा अचेतन माँ को झकझोड़ते और सिसकते हुए यही बात दोहरा रही है।     " रेखा छोड़ माँ को, तू जल्दी से भागकर गुरुजी को बुला ला ...

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लेखक के बारे में

कर्म से अध्यापिका ,हृदय से लेखिका व्यस्त दिनचर्या से लिखने-पढ़ने के लिए समय चुराकर... आशा, विश्वास और सकारात्मक भाव पढ़ती - लिखती हूँ

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Shakuntala Sharma
    23 सप्टेंबर 2020
    कहानी बहुत अच्छी लगी मध्यम वर्ग की परिस्थितियों का प्रभावशाली चित्रण किया गया है कहानी की नायिका रेखा का चरित्र मजबूती से प्रेरणा दायक है ।
  • author
    Kiran Patel
    18 नोव्हेंबर 2020
    nice story
  • author
    Veena Chouhan
    17 सप्टेंबर 2020
    बच्चियों कि समझदारी से घर बर्बाद होने से बच गया। सब पैरो पर खडे़ हो गये ।घर बस गये,रेखा कि भी शादी करवा देनी चाहिए थी।कहानी सामाजिक सरोकारो से जुड़ी है। सकारात्मकता का संदेश देती है। बहुत बहुत बधाई शुभकामनाएं सुनीता विश्नोलिया को
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    Shakuntala Sharma
    23 सप्टेंबर 2020
    कहानी बहुत अच्छी लगी मध्यम वर्ग की परिस्थितियों का प्रभावशाली चित्रण किया गया है कहानी की नायिका रेखा का चरित्र मजबूती से प्रेरणा दायक है ।
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    Kiran Patel
    18 नोव्हेंबर 2020
    nice story
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    Veena Chouhan
    17 सप्टेंबर 2020
    बच्चियों कि समझदारी से घर बर्बाद होने से बच गया। सब पैरो पर खडे़ हो गये ।घर बस गये,रेखा कि भी शादी करवा देनी चाहिए थी।कहानी सामाजिक सरोकारो से जुड़ी है। सकारात्मकता का संदेश देती है। बहुत बहुत बधाई शुभकामनाएं सुनीता विश्नोलिया को