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मैनावती

4.1
56556

मेरा बचपन किले की छांह में बीता। वह किला जो मेवाड़ की शान रहा और लगभग अविजित रहा। इस किले से इतिहास तो जुड़ा ही था। बहुत सी किंवदंतियां और वीरगाथाएं, बलिदान गाथाएं जुड़ी। रत्न सेन - पद्मिनी - खिलजी, ...

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लेखक के बारे में

जन्म : 26 अगस्त 1967, जोधपुर शिक्षा – बी.एससी., एम. ए. (हिन्दी साहित्य), एम. फिल., विशारद ( कथक) प्रकाशित कृतियाँ – कहानी संग्रह - कठपुतलियाँ, कुछ भी तो रूमानी नहीं, बौनी होती परछांई, केयर ऑफ स्वात घाटी, गंधर्वगाथा, अनामा उपन्यास-  शिगाफ़ ,  शालभंजिका,  पंचकन्या अनुवाद – माया एँजलू की आत्मकथा ‘ वाय केज्ड बर्ड सिंग’ के अंश, लातिन अमरीकी लेखक मामाडे के उपन्यास ‘हाउस मेड ऑफ डॉन’ के अंश, बोर्हेस की कहानियों का अनुवाद पुरस्कार, सम्मान और फैलोशिप : कृष्ण बलदेव वैद फैलोशिप – 2007 रांगेय राघव पुरस्कार वर्ष 2010 ( राजस्थान साहित्य अकादमी) कृष्ण प्रताप कथा सम्मान 2011 गीतांजलि इण्डो – फ्रेंच लिटरेरी प्राईज़ 2012 ज्यूरीअवार्ड रज़ा फाउंडेशन फैलोशिप – 2013 अन्य साऊथ एशियन लैग्वेज इंस्टीट्यूट, हायडलबर्ग (जर्मनी) में उपन्यास ‘शिगाफ़’ का अंश पाठ व रचना प्रक्रिया पर आलेख प्रस्तुति. (2011) नौवें विश्व सम्मेलन (2012) जोहांसबर्ग में शिरकत. और सूचना प्रोद्योगिकी और देवनागरी का सामर्थ्य विषय पर पर्चा संप्रति – स्वतंत्र लेखन और इंटरनेट की पहली हिन्दी वेबपत्रिका ‘हिन्दीनेस्ट’ का पंद्रह वर्षों से संपादन.

समीक्षा
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    fatehsingh sisodia
    22 मे 2020
    बिल्कुल बकवास है, मैं चित्तौड़ क़िले का निवासी हूं,भैरव पोल के पास इतनी जगह ही नहीं है कि वहां किसी मकान के होने की गुंजाइश हो, चढ़ते हुए भैरव पोल के बायीं तरफ़ किले के परकोटे की दीवार व दायीं तरफ़ ऊपर से तीव्र उतार है, भैरव पोल के दोनों तरफ दस फिट भी जगह नहीं है तो मकान होने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती, और हां, पिछले लगभग पचास साल से मैं किले पर उतर चढ़ रहा हूं, मैंने तो किसी मकान के अवशेष वहां आसपास नहीं देखें हैं, अतः ऐसी मनगढ़ंत कहानी बना कर चित्तौड़ दुर्ग जैसी ऐतिहासिक महत्व की जगह को बदनाम करने की कोशिश न करें ।
  • author
    Aashu Khan
    01 मे 2019
    ye kahani bilkul sach he bcz me nimbahera se hu jo chiitor garh se mahaz 30km ki duri par he aur is kile ki ek ek bat sach he mene bhi kahi dafa kuch anjani chizo ko mahsus kiya he aur ab to in sab ki aadat si ho chuki he kher... brilliant story good work...
  • author
    19 मे 2020
    achchi kahani 👌👌👌👌👌👌 magar adhuri si lagi ya to adhuri si lagna iss kahani ki khasiyat hia ya fir sach mein adhuri si..... kya hai jra sa bata dijiye.
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    fatehsingh sisodia
    22 मे 2020
    बिल्कुल बकवास है, मैं चित्तौड़ क़िले का निवासी हूं,भैरव पोल के पास इतनी जगह ही नहीं है कि वहां किसी मकान के होने की गुंजाइश हो, चढ़ते हुए भैरव पोल के बायीं तरफ़ किले के परकोटे की दीवार व दायीं तरफ़ ऊपर से तीव्र उतार है, भैरव पोल के दोनों तरफ दस फिट भी जगह नहीं है तो मकान होने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती, और हां, पिछले लगभग पचास साल से मैं किले पर उतर चढ़ रहा हूं, मैंने तो किसी मकान के अवशेष वहां आसपास नहीं देखें हैं, अतः ऐसी मनगढ़ंत कहानी बना कर चित्तौड़ दुर्ग जैसी ऐतिहासिक महत्व की जगह को बदनाम करने की कोशिश न करें ।
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    Aashu Khan
    01 मे 2019
    ye kahani bilkul sach he bcz me nimbahera se hu jo chiitor garh se mahaz 30km ki duri par he aur is kile ki ek ek bat sach he mene bhi kahi dafa kuch anjani chizo ko mahsus kiya he aur ab to in sab ki aadat si ho chuki he kher... brilliant story good work...
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    19 मे 2020
    achchi kahani 👌👌👌👌👌👌 magar adhuri si lagi ya to adhuri si lagna iss kahani ki khasiyat hia ya fir sach mein adhuri si..... kya hai jra sa bata dijiye.