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मैं, तुम और हम

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कल भी सिर्फ़ तुम और मैं थे, आज भी सिर्फ़ मैं और तुम ही हैं। इस कल और आज के बीच, बरसों का फ़ासला भी तो फिसल गया। बच्चों के साथ वक़्त न जाने कब गुज़र गया, पता ही न चला। बच्चे बड़े हो गए, और घोंसला छोड़ ...

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लेखक के बारे में
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Mridula Singh

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समीक्षा
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  • author
    Ekta Jain
    30 मई 2019
    Nice
  • author
    DrGunjana Singh
    28 मई 2019
    Very nice lines
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  • author
    Ekta Jain
    30 मई 2019
    Nice
  • author
    DrGunjana Singh
    28 मई 2019
    Very nice lines