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मैं अपने तमाशे पर मुस्कुराई बहुत हूँ..

4.7
352

मैं अपने ही तमाशे पर मुस्कुराई बहुत हूँ... मैं कभी फूल थी पर मुरझाई बहुत हूँ... किसी ने चाहा ही नहीं कि खुश रहूँ मैं भी... मैं भी कभी किसी की पसंद बन कर इतराई बहुत हूँ.... वक्त मिले तुम्हे कभी ...

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लेखक के बारे में

हाँ काफ़िर हूँ मैं... पर गौर फरमा... काबिल हूँ मैं

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    28 जुलाई 2018
    👏👏👏👏👏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹
  • author
    अतुल भटनागर
    01 अगस्त 2018
    बहुत सुंदर रचना
  • author
    राजेंद्र ठाकुर
    06 मार्च 2019
    दर्द मोहब्बत गम तकलीफ सूनापन या यूँ कहूँ की खुद को इस रचना मैं बयान कर दिया आपने । बेहतरीन रचना
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    28 जुलाई 2018
    👏👏👏👏👏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹
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    अतुल भटनागर
    01 अगस्त 2018
    बहुत सुंदर रचना
  • author
    राजेंद्र ठाकुर
    06 मार्च 2019
    दर्द मोहब्बत गम तकलीफ सूनापन या यूँ कहूँ की खुद को इस रचना मैं बयान कर दिया आपने । बेहतरीन रचना