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मैं अब भी तुम्हे लिखती हूँ

4.7
269

दूर रह कर भी तुझसे मैं तुझे बहुत सोचती हूं चाहे जहाँ भी मैं रहूं बात तुम्हारी ही करती हूं तुझे दिन रात सोच कर मैं लफ़्ज़ों में तुम्हे लिखती हूँ.... तेरे सारे झूठे वादों से आज भी मांग अपनी मैं भरती ...

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लेखक के बारे में

हाँ काफ़िर हूँ मैं... पर गौर फरमा... काबिल हूँ मैं

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    kumar gupta
    23 सितम्बर 2018
    हिचकियो से याद कब तक मै करू.... क्यों कोई बेमतलब  किसिको याद रहता है... गर वक्त मिले तो लौट आउंगा ... फिर ना कहना कि मै जानती ही नही ।
  • author
    विद्या शर्मा
    12 अगस्त 2018
    दिल के भावों की बड़ी ही खूबसूरत और प्यारी अभिव्यक्ति जो हर दिल को छू जाती है।
  • author
    DurgeshWari Sharma🚩
    12 अगस्त 2018
    आरोही जी, आपकी कविता पढ़ते हुए मेरी आंखे भर आई...। आपको मेरा स्नेह...।
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    kumar gupta
    23 सितम्बर 2018
    हिचकियो से याद कब तक मै करू.... क्यों कोई बेमतलब  किसिको याद रहता है... गर वक्त मिले तो लौट आउंगा ... फिर ना कहना कि मै जानती ही नही ।
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    विद्या शर्मा
    12 अगस्त 2018
    दिल के भावों की बड़ी ही खूबसूरत और प्यारी अभिव्यक्ति जो हर दिल को छू जाती है।
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    DurgeshWari Sharma🚩
    12 अगस्त 2018
    आरोही जी, आपकी कविता पढ़ते हुए मेरी आंखे भर आई...। आपको मेरा स्नेह...।