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मैं तो

4.6
546

विषम हालातों को हमदर्दी और संक्रामक बीमारियों का साथ देते, सूखे की चिंताओं में दुबलाते पत्ते , चल – चल कर अब थक गए हैं | न जाने किस जंगल से चोरी गए है, बाढ़ के सन्नाटों में खुशी और आंसुओं में शर्बत ...

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लेखक के बारे में

अभिव्यक्ति को सामने लाने की कोशिश कर रहा हूँ, और सिर्फ वही लिख रहा हूँ जो अभी मैं हूँ, तो उसे झूठ के शरबत की बजाय सच के काढ़े में घोलने का ज्यादा से ज्यादा प्रयत्न कर रहा हूँ । साथ ही जो धुंधलाते जा रहे कागजों पर था या है, उसे वैसा ही लिख देने से भी पीछे नही हटना चाहता हूँ | अतः अभिव्यक्ति की अपनी भाषा और अपनी चुप्पी को तलाशती रचनाये, आप से साझा कर रहा हूँ, साथ ही आपके सुझाव और सलाह की नितांत आवश्यकताओं के साथ....  धन्यवाद। 

समीक्षा
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    Anurag Anant
    14 अक्टूबर 2015
    बिम्बों का ऐसा ताना बना बुना गया है इस कविता में कि भावना की धधकती जमीन पर खड़े होकर भी व्याकुलता नहीं होती बल्कि गहराती हुई समस्याओं के परतें हटतीं हुई सी दिखती हैं. कविता की भावनात्मक, कलात्मक और राजनीतिक समझ सारे पक्ष उत्तम हैं.  
  • author
    pradeep prasann
    19 अक्टूबर 2015
    kavita achchi hai. aaj ke dor ki mansik v samajhik sthiti ko byan karti hai. ansuljhe swal v vyasth jindgi ki bhagdod me vyakti ke paas sb kuch hote hue bhi kuch nahi hai ki sthiti yah kavita kafi had tak byan karti hai. lekin kavita me kavita kam or vichar adhik hain jo ki aaj ki gady kavita ka chalan hai. isse kavita bhav ke bjaye vichar pradhan adhik hai. yah aam pathak se bahut dur hai, shbdavali bhi or kathan bhi. bhashagat kuch ashudhiyan bhi kavita ki ek kamjori hai. fir bhi aaj ke samy ko pratut karti hai.  
  • author
    shivam sonveer
    19 अक्टूबर 2015
    अभिव्यक्ति की अपनी भाषा को तलाशता कवि, जिस तरह वर्तमान के प्रहार व प्रवाह से जूझ रहा है, उसे बहुत ही अलग तरह से प्रकट किया आपने | कविता रोचक व विस्मरनिय है.. धन्यवाद आपको 
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    Anurag Anant
    14 अक्टूबर 2015
    बिम्बों का ऐसा ताना बना बुना गया है इस कविता में कि भावना की धधकती जमीन पर खड़े होकर भी व्याकुलता नहीं होती बल्कि गहराती हुई समस्याओं के परतें हटतीं हुई सी दिखती हैं. कविता की भावनात्मक, कलात्मक और राजनीतिक समझ सारे पक्ष उत्तम हैं.  
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    pradeep prasann
    19 अक्टूबर 2015
    kavita achchi hai. aaj ke dor ki mansik v samajhik sthiti ko byan karti hai. ansuljhe swal v vyasth jindgi ki bhagdod me vyakti ke paas sb kuch hote hue bhi kuch nahi hai ki sthiti yah kavita kafi had tak byan karti hai. lekin kavita me kavita kam or vichar adhik hain jo ki aaj ki gady kavita ka chalan hai. isse kavita bhav ke bjaye vichar pradhan adhik hai. yah aam pathak se bahut dur hai, shbdavali bhi or kathan bhi. bhashagat kuch ashudhiyan bhi kavita ki ek kamjori hai. fir bhi aaj ke samy ko pratut karti hai.  
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    shivam sonveer
    19 अक्टूबर 2015
    अभिव्यक्ति की अपनी भाषा को तलाशता कवि, जिस तरह वर्तमान के प्रहार व प्रवाह से जूझ रहा है, उसे बहुत ही अलग तरह से प्रकट किया आपने | कविता रोचक व विस्मरनिय है.. धन्यवाद आपको