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मैं द्रौपदी

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4.6

(1) मैं द्रौपदी , मन की व्यथा बताऊँ किसको किस्मत से मैं हारी सदा पांच पुरुषों में बंटी नारी की पीड़ा भी अनोखी है एक के संग हो हास - परिहास जब उसी क्षण दूजा मुंह सूजाता है तीसरे की आँखों का आमंत्रण ...