(1) मैं द्रौपदी , मन की व्यथा बताऊँ किसको किस्मत से मैं हारी सदा पांच पुरुषों में बंटी नारी की पीड़ा भी अनोखी है एक के संग हो हास - परिहास जब उसी क्षण दूजा मुंह सूजाता है तीसरे की आँखों का आमंत्रण ...
(1) मैं द्रौपदी , मन की व्यथा बताऊँ किसको किस्मत से मैं हारी सदा पांच पुरुषों में बंटी नारी की पीड़ा भी अनोखी है एक के संग हो हास - परिहास जब उसी क्षण दूजा मुंह सूजाता है तीसरे की आँखों का आमंत्रण ...