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मैं दर्पण जो देखू

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मैं दर्पण जो देखूँ , दिखे चेहरा तुम्हारा ये कैसी है उलझन सनम आँखे मेरी खा रही है धोखा या रंग गई मैं तेरे ही रंग ... मैं दर्पण जो देखूँ , दिखे चेहरा तुम्हारा ... कान्हा ओ कान्हा, कान्हा ओ ...

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लेखक के बारे में
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ભારતી વડેરા

Edu: B.Sc Mother tongue- Gujarati Worked as Receptionist for Nanavati Hospital Blood Bank

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    krishan kumar yadav "KK"
    22 नवम्बर 2023
    वाह शानदार
  • author
    Ranjeeta Dhyani
    15 नवम्बर 2023
    शानदार प्रस्तुति 👏👏👏👏👏👏👏👏👏
  • author
    Sumatiben Sejpal
    05 सितम्बर 2020
    અરે ઓ કાન્હા તો કેસા ખેલ કરેગા
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  • author
    krishan kumar yadav "KK"
    22 नवम्बर 2023
    वाह शानदार
  • author
    Ranjeeta Dhyani
    15 नवम्बर 2023
    शानदार प्रस्तुति 👏👏👏👏👏👏👏👏👏
  • author
    Sumatiben Sejpal
    05 सितम्बर 2020
    અરે ઓ કાન્હા તો કેસા ખેલ કરેગા