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मैं

3.8
750

माँस पर खिंची तराशी हुई, सुन्दर रेखाएं भर नहीं हूँ मैं कि तुम मुग्ध लोलुप दृष्टि से ताकते रहो, मेरे बाहरी आवरण भर को। जीवन से भरी, चिंगारी सी सुलगती अंगार सी दहकती एक लौ भी सतत् बलती रहती है मेरे ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Shilpi Manjari
    16 अक्टूबर 2019
    सुंदर शब्द चयन, प्रेरक मनोभाव, सटीक संयोजन
  • author
    Kamlesh Pandey
    30 नवम्बर 2023
    Achha sandesh bhavanaon ke antaraal ka.
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  • author
    Shilpi Manjari
    16 अक्टूबर 2019
    सुंदर शब्द चयन, प्रेरक मनोभाव, सटीक संयोजन
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    Kamlesh Pandey
    30 नवम्बर 2023
    Achha sandesh bhavanaon ke antaraal ka.