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हाथ में 70 प्रतिशत की मार्कशीट लिये हुए भी मन हताश और निराश था क्योंकि सूरज के पास अगली कक्षा में प्रवेश के लिए फीस के रुपये नहीं थे! पढ़ने में होनहार लेकिन गरीबी के दंश के आगे विवश और लाचार! बच्चों ...

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शालिनी साहू

शब्दों का मूक हो जाना पीड़ा की अन्तिम परिणति है। घाव गहरे से नासूर बने जख़्म की अन्तिम परिणति है पूर्ण कहाँ होता है हर स्वप्न रसातल की शरण में वेदना के सिन्धु में गोते लगाना अधूरे स्वप्न की अन्तिम परिणति है । ढुलक जाये जब हजारों मोती पलकों की कोरों से स्वयं को समेट लेना तब जीवन की अन्तिम परिणति है। पगडण्डियों पर चलना कहाँ आसान जब पथ का सही ज्ञान न हो अनुमान के सहारे चलते जाना तब गन्तव्य की अन्तिम परिणति है । बिखरने में अस्तित्व है सिमटने का सामने था वह स्वप्न जो अब पलकों की कोरों में ही रह गया स्वयं को इस घड़ी से उबार लेना ही जीने की अन्तिम परिणति है। शालिनी साहू ऊँचाहार, रायबरेली (उ0प्र0)

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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Cadt Rajneesh Raghav
    28 फ़रवरी 2018
    bhout achhe
  • author
    Jai Sharma
    30 जुलाई 2020
    शालिनी जी हमने आपकी रचना मदद पढ़ी अच्छा लगा । जीवन में इंसान को कभी निराश नहीं होना चाहिए क्यों कि ऊपरवाला अगर एक रास्ता बंद करता है तो दुसरा खोल देता है । शुक्रया
  • author
    Vivek Sahu
    23 जुलाई 2019
    bhut khoob apne liye toh jaanwar bhii jeete hain madad karne me hi khushi milti h maine feel kiya hai nyc story
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    Cadt Rajneesh Raghav
    28 फ़रवरी 2018
    bhout achhe
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    Jai Sharma
    30 जुलाई 2020
    शालिनी जी हमने आपकी रचना मदद पढ़ी अच्छा लगा । जीवन में इंसान को कभी निराश नहीं होना चाहिए क्यों कि ऊपरवाला अगर एक रास्ता बंद करता है तो दुसरा खोल देता है । शुक्रया
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    Vivek Sahu
    23 जुलाई 2019
    bhut khoob apne liye toh jaanwar bhii jeete hain madad karne me hi khushi milti h maine feel kiya hai nyc story