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माँ ..सिर्फ तुम्हारे लिए

4.1
2044

दिल में प्यार और आँखों में ममता छलकाती हमारे लिए लबों पे दुआ और चेहरे पे मुस्कान हमेशा रखती हमारे लिए न खुद की कोई चाह न करे परवाह वो फ़िक्र करे हमारे लिए हम फूलो की सेज पे कदम रखें वो काँटों ...

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लेखक के बारे में
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रश्मि तरीका

अफ़साने सुन ..किस्से सुन कर दिल में एक हसरत पाल बैठे हम भी दुआ कबूल हुई इस कदर कि कलम इश्क़ की दास्तां लिखने लगी ... उफ़ खुदाया ...मुझे भी इश्क़ हुआ ...''जैसे मैं ठहरी रही ज़मी चलने लगी ..धड़का ये दिल सांस थमने लगी ! बड़े बड़े इशक़ज़ादो ( साहित्य के ) ने जब अपनी मुहब्बत का इज़हार किया और फिर उनका खूब नाम हुआ इश्क़ के गलियारों में ! मेरी भी तमन्ना हुई की मेरा भी नाम हो ..मेरे इश्क़ को भी सलाम हो ! तो मैंने भी ढूंढ ही लिया किसी को ..बस इतना था कि वो पात्र कोई इंसा नहीं था !मैंने इश्क़ फ़रमाया लफ्ज़ो से ..जो कब से मेरे मन की गहराइयों में सुप्त से पड़े थे ! मैंने लफ्ज़ो को अपनी कलम के सहारे अपने अंतरमन की गहरी खाई से निकालने का प्रयास किया और इसी प्रयास के तहत मेरे लफ्ज़ कहानियों ..कविताओं के रूप में राजस्थान पत्रिका ..सन्मार्ग ...मैथिलिप्रवाहिका ..आगमन ..लेखनी ..प्रवासी दुनिया ..कैच माय पोस्ट ..गुजरात गौरव टाइम्स ..खबरयार और भी कई पत्रिकाओं में अपना अपना स्थान पाते रहे हैं और आगे भी अपना सफर तय कर रहे हैं ! खुदा की इस इनायत का शुक्र मनाते हुए मैं ....

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    03 फ़रवरी 2017
    समझदारों की दुनिया में माएँ मूर्ख होती हैं  मेरा भाई और कभी-कभी मेरी बहनें भी बड़ी सरलता से कह देते हैं मेरी माँ को मूर्ख और अपनी समझदारी पर इतराने लगते हैं वे कहते हैं नहीं है ज़रा-सी भी समझदारी हमारी माँ को किसी को भी बिना जाने दे देती है अपनी बेहद प्रिय चीज़ कभी शॉल, कभी साड़ी और कभी-कभी रुपये-पैसे तक देते हुए भूल जाती है वह कि कितने जतन से जुटाया था उसने यह सब और पल भर में देकर हो गई फिर से ख़ाली हाथ अभी पिछले ही दिनों माँ ने दे दी भाई की एक बढ़िया कमीज़ किसी राह चलते भिखारी को जो घूम रहा है उसी तरह निर्वस्त्र भरे बाज़ार में बहनें बिसूरती हैं कि पिता के जाने के बाद जिस साड़ी को माँ उनकी दी हुई अन्तिम भेंट मान सहेजे रहीं इतने बरसों तक वह साड़ी भी दे दी माँ ने सुबह-शाम आकर घर बुहारने वाली को माँ सच में मूर्ख है, सीधी है तभी तो लुटा देती है वह भी जो चीज़ उसे बेहद प्रिय है माँ मूर्ख है तभी तों पिता के जाने पर लुटा दिए जीवन के वे स्वर्णिम वर्ष हम चार भाई-बहनों के लिए कहते हैं जो प्रिय होते है स्त्री को सबसे अधिक पिता जब गए माँ अपने यौवन के चरम पर थीं कहा पड़ोसियों ने कि नहीं ठहरेगी यह अब उड़ जाएगी किसी सफ़ेद पंख वाले कबूतर के साथ निकलते लोग दरवाज़े से तो झाँकते थे घर के भीतर तक, लेकिन दरवाज़े पर ही टँगा दिख जाता माँ की लाज शरम का परदा दिन बीतते गए और माँ लुटाती गई जीवन के सब सुख, अपना यौवन अपना रंग अपनी ख़ुशबू हम बच्चों के लिए माँएँ होती ही हैं मूर्ख जो लुटा देती हैं अपने सब सुख औरों की ख़ुशी के लिए माँएँ लुटाती हैं तो चलती है सृष्टि इन समझदारों की दुनिया में जहाँ कुछ भी करने से पहले विचारा जाता है बार-बार पृथ्वी को अपनी धुरी पर बनाए रखने के लिए माँ का मूर्ख होना ज़रूरी है !! आभार :विकास शर्मा
  • author
    Bhagya
    05 जनवरी 2020
    माँ से बढकर ना कुछ होता है और ना कभी होगा सत्य को उजागर करती खुबसूरत रचना
  • author
    16 जनवरी 2019
    बिल्कुल सही और सुन्दर रचना
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    03 फ़रवरी 2017
    समझदारों की दुनिया में माएँ मूर्ख होती हैं  मेरा भाई और कभी-कभी मेरी बहनें भी बड़ी सरलता से कह देते हैं मेरी माँ को मूर्ख और अपनी समझदारी पर इतराने लगते हैं वे कहते हैं नहीं है ज़रा-सी भी समझदारी हमारी माँ को किसी को भी बिना जाने दे देती है अपनी बेहद प्रिय चीज़ कभी शॉल, कभी साड़ी और कभी-कभी रुपये-पैसे तक देते हुए भूल जाती है वह कि कितने जतन से जुटाया था उसने यह सब और पल भर में देकर हो गई फिर से ख़ाली हाथ अभी पिछले ही दिनों माँ ने दे दी भाई की एक बढ़िया कमीज़ किसी राह चलते भिखारी को जो घूम रहा है उसी तरह निर्वस्त्र भरे बाज़ार में बहनें बिसूरती हैं कि पिता के जाने के बाद जिस साड़ी को माँ उनकी दी हुई अन्तिम भेंट मान सहेजे रहीं इतने बरसों तक वह साड़ी भी दे दी माँ ने सुबह-शाम आकर घर बुहारने वाली को माँ सच में मूर्ख है, सीधी है तभी तो लुटा देती है वह भी जो चीज़ उसे बेहद प्रिय है माँ मूर्ख है तभी तों पिता के जाने पर लुटा दिए जीवन के वे स्वर्णिम वर्ष हम चार भाई-बहनों के लिए कहते हैं जो प्रिय होते है स्त्री को सबसे अधिक पिता जब गए माँ अपने यौवन के चरम पर थीं कहा पड़ोसियों ने कि नहीं ठहरेगी यह अब उड़ जाएगी किसी सफ़ेद पंख वाले कबूतर के साथ निकलते लोग दरवाज़े से तो झाँकते थे घर के भीतर तक, लेकिन दरवाज़े पर ही टँगा दिख जाता माँ की लाज शरम का परदा दिन बीतते गए और माँ लुटाती गई जीवन के सब सुख, अपना यौवन अपना रंग अपनी ख़ुशबू हम बच्चों के लिए माँएँ होती ही हैं मूर्ख जो लुटा देती हैं अपने सब सुख औरों की ख़ुशी के लिए माँएँ लुटाती हैं तो चलती है सृष्टि इन समझदारों की दुनिया में जहाँ कुछ भी करने से पहले विचारा जाता है बार-बार पृथ्वी को अपनी धुरी पर बनाए रखने के लिए माँ का मूर्ख होना ज़रूरी है !! आभार :विकास शर्मा
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    Bhagya
    05 जनवरी 2020
    माँ से बढकर ना कुछ होता है और ना कभी होगा सत्य को उजागर करती खुबसूरत रचना
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    16 जनवरी 2019
    बिल्कुल सही और सुन्दर रचना