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माँ

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4.2

कलेजा माँ का मैं निकालकर जब चला था मातृत्व का सूरज तब भी तो नहीं ढला था मेरे हर सपनोका तेरी आँखोंमें पनाह मिली मगर मैंने हरपल तेरी ममता को छला था सभी माँ सहती है दुख ऐसा माना था मैंनेभी खिलौना ला ...