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लखनऊ : शहर-ए-स्वाद

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लखनवीं स्वाद जिसके मुंह लग गया बस लग गया. मैं अपने शब्दों से आपको उस स्वाद से परिचित कराने की कोशिश करूंगा. यहाँ का खाना इस कदर लोगों के दिमाग पर चढ़ा है कि, उसकी किस्से भी अपने आप में बहुत मशहूर हैं. ...

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लेखक के बारे में
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समीर तिवारी

हे पथिक! ठहरो। तनिक रुको। तुम थक गए होगे। अगर तुम्हारे पास थोड़ा समय हो तो मेरी कुछ पंक्तियाँ पढ़कर अपनी थकान ‌मिटा लो।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Harvinder Kour Raina
    05 नोव्हेंबर 2021
    मैं खानें की बहुत शौकीन हूं आप की रचना पढ़कर बहुत मन हो रहा है कि एक बार लखनऊ जरूर जाना चाहिए और मुझे नहीं पता था कि काली गाजर भी होती है । आप के बताए सभी व्यंजन बेहतरीन है 👌👌👌 बहुत ही अच्छा लिखा है आपने 👍👍👍
  • author
    22 फेब्रुवारी 2018
    अति उत्तम
  • author
    SUBEDAR PANDEY
    08 ऑगस्ट 2020
    लखनऊ में खाने अलावा भी बहुत कुछ है, जैसे शहर का नबाबी रइसी मिजाज,उसकी तहजीब, दर्शनीय स्थल,आदि, रचना भले ही एकांगी हो , फिर भी खाने की दुकानों तथा व्यंजनों के माध्यम से मुंह से लार तो टपका ही दिया रचना में कहीं कहीं वर्तनी तथा मात्रा में त्रुटि है फिर भी लेखक का प्रयास सराहनीय है जिसके लिए वे अभिनंदन तथा बधाई के पात्र हैं। रचनाकार-----सूबेदार पाण्डेय कवि आत्मानंद जमसार सिंधोरा बाजार वाराणसी
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  • author
    Harvinder Kour Raina
    05 नोव्हेंबर 2021
    मैं खानें की बहुत शौकीन हूं आप की रचना पढ़कर बहुत मन हो रहा है कि एक बार लखनऊ जरूर जाना चाहिए और मुझे नहीं पता था कि काली गाजर भी होती है । आप के बताए सभी व्यंजन बेहतरीन है 👌👌👌 बहुत ही अच्छा लिखा है आपने 👍👍👍
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    22 फेब्रुवारी 2018
    अति उत्तम
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    SUBEDAR PANDEY
    08 ऑगस्ट 2020
    लखनऊ में खाने अलावा भी बहुत कुछ है, जैसे शहर का नबाबी रइसी मिजाज,उसकी तहजीब, दर्शनीय स्थल,आदि, रचना भले ही एकांगी हो , फिर भी खाने की दुकानों तथा व्यंजनों के माध्यम से मुंह से लार तो टपका ही दिया रचना में कहीं कहीं वर्तनी तथा मात्रा में त्रुटि है फिर भी लेखक का प्रयास सराहनीय है जिसके लिए वे अभिनंदन तथा बधाई के पात्र हैं। रचनाकार-----सूबेदार पाण्डेय कवि आत्मानंद जमसार सिंधोरा बाजार वाराणसी