लखनवीं स्वाद जिसके मुंह लग गया बस लग गया. मैं अपने शब्दों से आपको उस स्वाद से परिचित कराने की कोशिश करूंगा. यहाँ का खाना इस कदर लोगों के दिमाग पर चढ़ा है कि, उसकी किस्से भी अपने आप में बहुत मशहूर हैं. ...
मैं खानें की बहुत शौकीन हूं आप की रचना पढ़कर बहुत मन हो रहा है कि एक बार लखनऊ जरूर जाना चाहिए और मुझे नहीं पता था कि काली गाजर भी होती है । आप के बताए सभी व्यंजन बेहतरीन है 👌👌👌 बहुत ही अच्छा लिखा है आपने 👍👍👍
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लखनऊ में खाने अलावा भी बहुत कुछ है, जैसे
शहर का नबाबी रइसी मिजाज,उसकी तहजीब, दर्शनीय स्थल,आदि, रचना भले ही एकांगी हो ,
फिर भी खाने की दुकानों तथा व्यंजनों के माध्यम से मुंह से लार तो टपका ही दिया रचना में कहीं कहीं वर्तनी तथा मात्रा में त्रुटि है फिर भी
लेखक का प्रयास सराहनीय है जिसके लिए वे
अभिनंदन तथा बधाई के पात्र हैं। रचनाकार-----सूबेदार पाण्डेय कवि आत्मानंद जमसार सिंधोरा बाजार वाराणसी
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