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लोटे का भार

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मोहन मास्टर साहेब अपने स्कूल के सबसे कर्मठ शिक्षकों में एक थे।  हेडमास्टर साहेब जब भी कोई कठिनाई में फंसते तो उनकी नय्या वही पार लगते। उसके विपरीत क्षात्रों में उनके नाम का भय था।  उनकी जबान से ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    asha singh
    12 जून 2020
    बचपन की शरारतें ऐसी ही होती हैं,उनका उद्देश्य सिर्फ हंसना होता है। सही और ग़लत का विचार तो बहुत बड़े होने पर ही आता है।बहुत सुंदर हास्य।
  • author
    Jayshree Singh
    29 अगस्त 2020
    बहुत सुंदर स्थैतिक रचना । बहुत बढ़िया।
  • author
    12 जून 2020
    bahut bdiay yaar, lajwab rachna.
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    asha singh
    12 जून 2020
    बचपन की शरारतें ऐसी ही होती हैं,उनका उद्देश्य सिर्फ हंसना होता है। सही और ग़लत का विचार तो बहुत बड़े होने पर ही आता है।बहुत सुंदर हास्य।
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    Jayshree Singh
    29 अगस्त 2020
    बहुत सुंदर स्थैतिक रचना । बहुत बढ़िया।
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    12 जून 2020
    bahut bdiay yaar, lajwab rachna.